Monday, December 24, 2012

प्रधानमंत्री का संदेश

24-दिसंबर-2012 13:34 IST
शांति बनाये रखें और हमारे प्रयासों में सहयोग देंमेरे प्‍यारे देशवासियो, दिल्‍ली में पिछले रविवार को सामूहिक बलात्‍कार की जो क्रूर आपराधिक घटना हुई, उस पर आपका गुस्‍सा और आक्रोश स्‍वाभाविक और उचित है। तीन बेटियों का पिता होने के नाते मैं भी आप सबकी तरह इस घटना से बहुत व्‍यथित हूं। मेरी पत्‍नी, मेरा परिवार और मैं सभी उस युवती के लिए चिंतित हैं, जो इस घृणित अपराध की शिकार हुई। हम लगातार उसकी शारीरिक स्थिति और इलाज पर नजर रख रहे हैं। इस संकटपूर्ण घड़ी में आइये, हम सब मिलकर उसके लिए और उसके प्रियजनों के लिए प्रार्थना करें। 

इस घटना पर प्रतिक्रिया के रूप में विरोध प्रकट करने वाले प्रदर्शनकारियों और पुलिस बलों के बीच हुई झड़पों पर भी मुझे गहरा दुःख है। इस अपराधपूर्ण घटना पर गुस्‍सा उचित है, लेकिन हिंसा से कोई उद्देश्‍य पूरा नहीं होगा। मैं सभी सम्‍बद्ध नागरिकों से शांति और संयम बनाये रखने की अपील करता हूं। मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि हम देश में महिलाओं की सुरक्षा और सलामती सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव प्रयास करेंगे। इस बारे में जो कदम उठाये जा रहे हैं, उनके बारे में गृह मंत्री पहले ही बता चुके हैं। हम बिना किसी देरी के इस भयंकर अपराध पर व्‍यक्‍त प्रतिक्रियाओं का न केवल अध्‍ययन करेंगे, बल्कि महिलाओं और बच्‍चों की सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं की भी समीक्षा करेंगे और जो लोग ऐसे भयानक अपराध करते हैं, उनको क्‍या सज़ा दी जाये, इस पर गंभीरता से विचार करेंगे। हमारी सरकार इस संबंध में जो भी कदम उठायेगी और जो प्रक्रियाएं अपनायेगी, उस बारे में हम आपको जानकारी देते रहेंगे। 

मैं समाज के सभी वर्गों से अपील करता हूं कि वे शांति बनाये रखें और हमारे प्रयासों में सहयोग दें।   (PIB)

वि. कासोटिया/राजगोपाल/चन्‍द्रकला —631

Wednesday, December 19, 2012

खाली दुकानों का आबंटन

19-दिसंबर-2012 15:54 IST
आईएनए, नई दिल्‍ली में 123 दुकानें आबंटन के लिए खाली 
शहरी विकास राज्‍य मंत्री श्रीमती दीपा दासमुंशी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के उत्‍तर में बताया कि संपदा निदेशालय के नियंत्रण में मोहन सिंह मार्केट, आईएनए और न्‍यू मोती बाग़ केंद्रीय सरकार आवासीय कालोनी, नई दिल्‍ली में कुल 127 दुकानें खाली पड़ी हैं। इन 127 दुकानों में से मोहन सिंह मार्किट, आईएनए, नई दिल्‍ली में 123 दुकानें आबंटन के लिए खाली पड़ी हैं। 

सरकार की नीति के अनुसार न्‍यू मोती बाग़ केंद्रीय सरकार आवासीय कालोनी, नई दिल्‍ली में नव निर्मित 4 दुकानों के आबंटन की प्रक्रिया विचाराधीन है। (PIB)


मीणा/शुक्‍ल/सुमन —6212

दिल्‍ली में अवैध कारखाने

19-दिसंबर-2012 15:46 IST
3800 में से 44 इकाईयों/कारखानों को सील करने की कार्रवाई
शहरी विकास राज्‍य मंत्री श्रीमती दीपा दासमुंशी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के उत्‍तर में बताया कि दिल्‍ली नगर निगम द्वारा, दिल्‍ली मास्‍टर प्‍लान-2021 में यथा निर्दिष्‍ट अनुरूप क्षेत्रों में दिल्‍ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा 416 और 417 के अनुसार कारखाने/औद्योगिक इकाईयों के लिए लाइसेंस दिए जाते हैं। अवैध कारखानों के चलने की सूचना निगमों के ध्‍यान में लाए जाने पर उक्‍त अधिनियम के उपबंधों के अनुसार उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाती है। दक्षिणी दिल्‍ली नगर निगम ने अभी तक 349 इकाईयों/कारखानों के खिलाफ कार्रवाई की है जबकि पूर्वी दिल्‍ली नगर निगम ने उक्‍त अधिनियम के अनुसार पहचान की गई 3800 इकाईयों में से 44 इकाईयों/कारखानों को सील करने की कार्रवाई की है। (PIB) 
19-दिसंबर-2012 15:46 IST
मीणा/शुक्‍ल/सुमन —6211

Thursday, December 13, 2012

राज्‍य सभा में प्रश्‍न/उत्‍तर

13-दिसंबर-2012 15:19 IST
दिल्‍ली की अनधिकृत कॉलोनियों में निर्माण के लिए दिशा-निर्देश
                                                                                     तस्वीर नया इण्डिया से साभार 
शहरी विकास राज्‍य मंत्री श्रीमती दीपा दासमुंशी ने आज राज्‍य सभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया कि अ‍नधिकृत कॉलोनियों में निर्माण हेतु विनियमन दिल्‍ली मास्‍टर प्‍लान-2010 के तहत दिनांक 17 जनवरी, 2011 की अधिसूचन सं. सा.आ. 97(ई) के तहत दिल्‍ली विकास प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित ''विशेष क्षेत्र, अनधिकृत नियमित कॉलोनियों एवं गांव आबादियों के लिए भवन विनियमन, 2010'' के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त दिनांक 24 मार्च, 2008 की राजपत्र अधिसूचना सं. सा.आ. 683(ई) और दिनांक 16 जून, 2008 की राजपत्र अधिसूचना सं. सा.आ. 1452 (ई) के अंतर्गत अधिसूचित उसमें संशोधनों तथा दिनांक 6 जून, 2012 की राजपत्र अधिसूचना सं. सा.आ. 1297 (ई) के तहत दिल्‍ली विकास प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित दिल्‍ली में अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितिकरण हेतु विनियमनों के अनुसार अनधिकृत कॉलोनियों के लेआउट प्‍लान आवासीय कल्‍याण संगठनों (आरडब्‍ल्‍यूए) द्वारा प्रस्‍तुत किए जाने पर स्‍थानीय निकाय में सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं, भवन निर्माण गतिविधियां लेआउट प्‍लान के अनुमोदन के पश्‍चात ही अनुमेय हैं। (PIB)
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मीणा/बिष्‍ट/लक्ष्‍मी-6034

Sunday, December 2, 2012

बैंक के दायरे में सभी परिवारों का वित्‍तीय समावेश

लक्ष्‍य अगस्‍त, 2014 तक प्राप्‍त कर लिया जाएगा
वित्‍त विशेष लेख                                                 रविन्‍दर सिंह
Courtesy Photo
      वित्‍तीय समावेश का अर्थ देश की ऐसी आबादी तक वित्‍तीय सेवाएं पहुंचाना है, जो अभी तक इसके दायरे में नहीं हैं। इसका उद्देश्‍य विकास क्षमता को बढ़ाना है। इसके अलावा इसका उद्देश्‍य गरीब लोगों को वित्‍तीय समावेश के जरिए वित्‍त उपलब्‍ध कराना है। इस वर्ष के स्‍वतंत्रता दिवस पर दिये गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि  ‘ये हमारा प्रयास होगा कि हम अगले दो वर्षों में सभी परिवारों के लिए बैंक खातों के लाभ को सुनि‍श्‍चि‍त करें।’ इसको मद्देनजर रखते हुए स्‍वाभिमान के तहत बैंक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। ऐसा अभियान भी शुरू किया गया है कि कम से कम एक परिवार के पास एक बैंक खाता अवश्‍य हो। आशा की जाती है यह लक्ष्‍य अगस्‍त, 2014 तक प्राप्‍त कर लिया जाएगा।बैंक शाखाओं का नेटवर्क
    31 मार्च, 2012 तक देश में काम करने वाले अधिसूचित वाणिज्‍य बैंकों की कुल 93,659 शाखाएं हैं। इनमें से 34,671 (37.02 प्रतिशत) शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। इसके अलावा 24,133 (25.77 प्रतिशत) शाखाएं कस्‍बों में हैं और 18,056 (19.28 प्रतिशत) शहरी क्षेत्रों में तथा 16,799 (17.93 प्रतिशत) शाखाएं महानगरीय क्षेत्रों में काम कर रही हैं।
बैंक शाखाएं खोलना
    वित्‍तीय समावेश और बैंक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की शाखाएं खोलने की आवश्‍यकता बढ़ रही है, जिसको देखते हुए सरकार ने अक्‍तूबर, 2011 में वित्‍तीय समावेश के संबंध में विस्‍तृत रणनीति और मार्ग निर्देश जारी किये थे। सरकार ने बैंकों को सलाह दी थी कि ऐसे सभी कम बैंकों वाले क्षेत्रों में जिनकी आबादी पांच हजार या उससे अधिक है और अन्‍य सभी जिलों में जिनकी आबादी दस हजार या उससे अधिक है, वहां शाखाएं खोली जाएं। जून, 2012 के अंत तक इन सभी क्षेत्रों में 1,237 शाखाएं (अति लघु शाखाओं सहित) खोली गईं।
आरआरबी शाखाओं की विस्‍तार योजना
    वित्‍तीय समावेशी योजना को प्रभावशाली बनाने और बिना बैंक/कम बैंक वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए आरआरबी को वर्ष 2011-12 और 2012-13 के लिए शाखा विस्‍तार के लिए काम करना आवश्‍यक हुआ। यह पिछले वर्ष के मुकाबले दस प्रतिशत की वृद्धि के साथ है। वर्ष 2011-12 के दौरान आरआरबी ने 1247 शाखाएं खोलने का लक्ष्‍य तय किया था। इस लक्ष्‍य के अनुरूप आरआरबी ने 913 शाखाएं खोली हैं। यह लक्ष्‍य से कम है, लेकिन 2010-11 में खोली गईं 521 शाखाएं तथा 2009-10 में खोली गई 299 शाखाओं के मुकाबले बहुत अधिक है। वर्ष 2012-13 के लिए 1,845 नई शाखाएं खोलने का लक्ष्‍य तय किया गया है।
आरआरबी शाखाओं को खोलने की नीति को उदार बनाना
   भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक अगस्‍त, 2012 को जारी सर्कुलर में आरआरबी की ब्रांच लाइसेंसिंग नीति को उदार बना दिया है और उसने आरआरबी को अनुमति दे दी है कि वह टीयर 2-6 केन्‍द्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जिन केन्‍द्रों की आबादी 99,999 हो) में शाखाएं खोले और इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक से अनुमति की आवश्‍यकता नहीं होगी। इसके लिए आवश्‍यक है कि वे कतिपय शर्तों को पूरा करें। जो आरआरबी शर्तों को पूरा नहीं करते हैं, उन्‍हें भारतीय रिजर्व बैंक/नबार्ड से अनुमति लेनी होगी। टीयर-1 केन्‍द्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जहां आबादी 100,000 या उससे अधिक हो) वहां शाखाएं खोलने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी होगी।
स्‍वाभि‍मान-वि‍त्‍तीय समावेशी अभि‍यान

बैंकिंग की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के लि‍ए बैंकों को मार्च 2012 तक 2000 से अधि‍क आवादी वाले स्‍थानों पर समुचि‍त सुवि‍धाएं मुहैया कराने को कहा गया है। उन्‍हें वाणि‍ज्‍यि‍क एजेंटों- बीसीए के माध्‍यम से शाखारहि‍त बैंकिंग सहि‍त वि‍भि‍न्‍न मॉडलों और प्रौद्योगि‍की का इस्‍तेमाल करते हुए, यह काम पूरा करने को कहा गया है। ‘’स्‍वाभि‍मान’’ नाम का यह समावेशी अभि‍यान सरकार द्वारा औपचारि‍क रूप से फरवरी 2011 में शुरू कि‍या गया था। इस अभि‍यान के तहत मार्च 2012 तक 74 हजार 194 गांवों में बैंकिंग सुवि‍धा मुहैया कराई गई है और लगभग 3 करोड़ 16 लाख वि‍त्‍तीय खाते खोले गए हैं। वि‍त्‍त मंत्री के 2012-13 के वजट भाषण में ‘’स्‍वाभि‍मान’’ अभि‍यान को पूर्वोत्‍तर और पर्वतीय राज्‍यों में 1000 से अधि‍क आवादी और 2011 के जनगणना के मुताबि‍क 2000 से अधि‍क आबादी वाले स्‍थानों पर पहुंचाने का फैसला कि‍या गया। इसी के अनुरूप इस अभि‍यान को पहुंचाने के लि‍ए 45 हजार ऐसी आबादी की पहचान की गई है।
अत्‍यंत लघु शाखाओं की स्‍थापना
संबंधि‍त बैंकों द्वारा वाणि‍ज्‍यि‍क एजेंटों के कार्यों पर नि‍गरानी रखने और उन्‍हे सलाह देने की आवश्‍यकता को देखते हुए तथा नि‍र्दि‍ष्‍ट गांवों में बैंकिंग सुवि‍धा सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए बीसीए के माध्‍यम से अत्‍यंत लघु बैंकिंग शाखाएं-यूएसबी स्‍थापि‍त करने का फैसला कि‍या गया है। ये शाखाएं 100 से 200 वर्ग फुट में होंगी। जहां बैंकों द्वारा नि‍र्दि‍ष्‍ट की गई अधि‍कारी पहले से तय कि‍ए गए दि‍नों को लैपटॉप के साथ उपलब्‍ध रहेंगे। नकदी की सुवि‍धा बैंकिंग एजेंटों द्वारा दी जाएगी जबकि‍ बैंक अधि‍कारी अन्‍य सुवि‍धाएं उपलब्‍ध कराएंगे। वे जमीनी स्‍तर पर सत्‍यापन तथा बैंकिंग लेन-देन का काम करेंगे। क्षेत्र में व्‍यापारि‍क संभावनाओं के अनुसार दौरे और कार्यक्रम बढ़ाएं जा सकते हैं। 
बि‍ना बैंक वाले प्रखंडों में बैंकिंग सुवि‍धाएं 
बि‍ना बैंक वाले प्रखंडों में बैंकिंग सुवि‍धाएं उपलब्‍ध कराने के लि‍ए सरकार ने जुलाई 2009 में 129 ऐसे प्रखंडों की पहचान की थी। इनमें से 91 प्रखंड पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में है और 38 अन्‍य राज्‍यों में हैं। सरकार के नि‍रंतर प्रयासों से 31 मार्च 2011 तक बि‍ना बैंक वाले प्रखंडों की संख्‍या घटकर 71 रह गई है और मार्च 2012 तक बैंकिंग सुवि‍धाएं सभी गैर-बैंकिंग प्रखंडों में स्‍थायी बैंकों या बैंकिंग एजेंटों या मोबाईल बैंकिंग के जरि‍ए उपलब्‍ध कराई जा रही है।
प्रत्‍येक परि‍वार में एक बैंक खाता खोलना
    केंद्र और राज्‍य सरकारों की वि‍भि‍न्‍न योजनाओं के अंतर्गत लाभार्थियों के खाते में इलेक्‍ट्रॉनि‍क अंतरण के जरि‍ए नकदी का लाभ पहुंचाना सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए यह आवश्‍यक है कि‍ की लाभार्थियों का खाता संबंधि‍त बैंक में हो। इसी के अनुरूप बैंकों को सलाह दी गई है कि‍ ग्रामीण क्षेत्रों के सर्विस एरि‍या वाले बैंकों तथा शहरी इलाकों के वि‍शेष वार्डों में इस उत्‍तरदायि‍त्‍व के लि‍ए चुने गये बैंक यह सुनि‍श्‍चि‍त करें कि‍ प्रत्‍येक परि‍वार में कम से कम एक बैंक खाता हो।
सलाहकार समि‍ति‍
     भारतीय रि‍जर्व बैंक ने वि‍त्‍तीय समावेशन के प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाने के लि‍ए एक उच्‍च स्‍तरीय वि‍त्‍तीय समावेशी सलाह समि‍ति‍-एफआईएसी गठि‍त की है। इस समि‍ति‍ के सदस्‍यों की सामूहि‍क  वि‍शेषज्ञता तथा अनुभवों से यह उम्‍मीद की जाती है कि‍ वे बैंकिंग नेटवर्क से बाहर के ग्रामीण तथा शहरी उपभोक्‍ताओं के लि‍ए वहन करने योग्‍य वि‍त्‍तीय सेवाओं पर केन्‍द्रि‍त टि‍काऊ बैंकिंग सुवि‍धा की ओर ध्‍यान देंगे और समुचि‍त नि‍यामक व्‍यवस्‍था का ढ़ांचा सुझाएंगे ताकि‍ वि‍त्‍तीय समावेशन और वि‍त्‍तीय स्‍थि‍रता साथ-साथ चलाई जा सके। इस समि‍ति‍ के अध्‍यक्ष रि‍जर्व बैंक के डि‍प्‍टी गवर्नर डॉ. के सी चक्रबर्ती हैं तथा इसमें बैंकिंग और वि‍त्‍तीय क्षेत्र के 11 सदस्‍य शामि‍ल हैं। इ‍समें भारत सरकार के वि‍त्‍त मंत्रालय के वि‍त्‍तीय सेवा वि‍भाग में सचि‍व श्री डी के मि‍त्‍तल भी शामि‍ल हैं।

यह समि‍ति‍ अगर आवश्‍यक हुई तो कॉरपोरेट तथा बि‍जनेस की कवरेज करने वाले कॉरस्‍पॉेडेंट तथा प्रौद्योगि‍की से जुड़े अन्‍य लोगों को भी वि‍शेष आमंत्रि‍त सदस्‍यों के रूप में बैठक में बुला सकती है। चूंकि‍ भारत में चयनि‍त वि‍त्‍तीय समावेशी प्रारूप प्राथमि‍क रूप से बैंक आधारि‍त है इसलि‍ए वि‍त्तीय समावेशी सलाहकार समि‍ति‍ अपनी प्रत्‍येक बैठक में बैंकों के अध्‍यक्ष सह प्रबंध नि‍देशकों को भी आमंत्रि‍त कर सकती है ताकि‍ बैंकों का नजरि‍या भी मालूम हो सके।

वि‍त्‍तीय समावेशन बढ़ाने की दि‍शा में उल्‍लेखनीय लेकि‍न धीमी प्रगति‍ हो रही है। हालांकि‍ भारत के सभी 6 लाख गांवों में वहन करने योग्‍य वि‍त्‍तीय सेवाएं सुनि‍श्‍चि‍त कराना एक बहुत ही बड़ा कार्य है। इसके लि‍ए सभी संबंधि‍त पक्षों- भारतीय रि‍जर्व बैंक अन्‍य सभी क्षेत्रों के नि‍यामकों जैसे भारतीय प्रति‍भूति‍ एवं वि‍नि‍मय बोर्ड, पेंशन कोश नि‍यामक और वि‍कास प्राधि‍करण, राष्‍ट्रीय कृषि‍ एवं ग्रामीण वि‍कास बैंक, बैंकों, राज्‍य सरकारों, समाजि‍क संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों के बीच एक साझेदारी की आवश्‍यकता है।   (PIB)   
27-नवंबर-2012 18:16 IST                 
 बैंक के दायरे में सभी परिवारों का वित्‍तीय समावेश
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वि.कासोटिया/अरूण/अजीत/मनोज/यशोदा-289

Tuesday, September 25, 2012

मसालों की खेती

भारत के पांच राज्य प्रमुख मसाला उत्पादक 
भारत में कई तरह के मसालों की खेती होती है जिनका उत्पादन 57 लाख टन प्रति वर्ष से अधिक है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश प्रमुख मसाला उत्पादक राज्य हैं.
(पत्र सूचना कार्यालय)मसालों की खेती

Sunday, September 23, 2012

पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं है//राजीव गुप्ता

Sat, Sep 22, 2012 at 3:26 PM
सारा मुद्दा अब संसद से सड़क तक पंहुचा 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर हो रहे चौतरफा हमलो का जबाब देने के लिए अब खुद एक अर्थशास्त्री के रूप में कमान सम्हाल ली है. परन्तु यह भी एक कड़वा सच है कि यूपीए - 2  इस समय अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. जनता की नजर में सरकार की साख लगातार नीचे गिरती जा रही है. सरकार के हठ के कारण उसके तृणमूल कांग्रेस जैसे अहम् सहयोगी अब सरकार से किनारा तो काट चुके है लेकिन दूसरे सहयोगी भी अवसर की राजनीति खेलते हुए सरकार से मोल-भाव करने की तैयारी में है. कांग्रेस की अगुआई वाली यूंपीए-2 सरकार ने उसी आम-आदमी को महगाई और बेरोजगारी से त्राहि-त्राहि करने पर मजबूर कर दिया है जिसके बलबूते पर वह सत्ता में वापस आई है. सरकार ने आर्थिक सुधार के नाम पर जन-विरोधी और जल्दबाजी में लिए गए फैसलों के कारण सारा मुद्दा अब संसद से सड़क तक पंहुचा दिया है. समूचे विपक्ष के डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी, घरेलू गैस पर सब्सिडी कम करने तथा प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) पर सरकार के फैसले के खिलाफ भारत बंद की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कबिनेट के फैसले का नोटिफिकेशन जारी कर यह जताने की कोशिश की सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटेगी. 

इतना ही नहीं गत शुक्रवार को देश को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने सरकार की तरफ से मोर्चा सँभालते हुए जनता को अपने उन तीनो फैसलों डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी, घरेलू गैस पर सब्सिडी कम करने तथा खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश पर सफाई देने की कोशिश की. मनमोहन सिंह ने अपने लघु-भाषण में यह बताने की कोशिश की लगातार हो रहे सरकारी वित्तीय घाटे के चलते "उन्होंने" ये फैसले मजबूरी में लिए है परन्तु वे यह बताने से पूरी तरह कन्नी काट गए कि यूपीए कार्यकाल के दौरान अभी तक जितने भी घोटाले हुए है वे पैसे कहा गए ? आखिर वे पैसे भी आम जनता के ही जेब से गए थे. सुरसा रूपी प्रतिदिन बढ़ती महंगाई और दम तोडती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु घोटालो के पैसो और काले धन को वापस भारत लाकर सरकारी घाटे को कम किया जा सकता था. साथ ही हमें यह समझना होगा कि अभी भारत की हालत इस समय कोई 1991 के कार्यकाल की तरह नहीं है कि हमें विदेशों से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को बचाना पड़ेगा जिसका हवाला प्रधानमंत्री बार-बार दे रहे है. बहरहाल मनमोहन सिंह के इस बयान कि "पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं है" ने आग में घी डालने का काम किया. सरकार आर्थिक  सुधारों के नाम पर जल्दबाजी में  अपने नए - नए फैसलों के कारण समूचे विपक्ष समेत अपने सहयोगियों को भी अचंभित कर उन्हें विरोध करने के लिए मजबूर कर रही है. ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले  24 नवम्बर 2011 को खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के सबंध में सरकार ने फैसला लेकर अपनी मुसीबत और बढ़ा ली थी जिसके चलते  शीतकालीन सत्र के दोनों सदन दिन भर के लिए स्थगित हो गए थे.  महंगाई , भ्रष्टाचार , कोलगेट और कालेधन पर चौतरफा घिरी सरकार ने अपनी नाकामियों को छुपाने एवं अपनी बची - खुची साख सुधारने के लिए जो तुरुप का एक्का चला वही उसके गले की फांस बन गया.

खुदरा क्षेत्र सहित नागरिक उड्डयन तथा चार सार्वजनकि कंपनियों में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को सरकार द्वारा हरी झंडी देने के बाद राजनैतिक दलों में जैसी मोर्चाबंदी हुई है, उससे केंद्र की राजनीतिक स्थिरता पर अनिश्चिता का संकट मंडराना अब स्वाभाविक ही है. इस समय भारत की जनता के सम्मुख राजनैतिक दलों की विश्वसनीयता ही सवालो के घेरे में है. परन्तु इन सब उठापटक के बीच सरकार मौन होकर स्थिति को भांप रही है. सरकार आर्थिक सुधार के नाम पर देश-विदेश में अपनी छवि सुधारने की कवायद में लगी है क्योंकि स्वयं मनमोहन सिंह ने ही कह दिया था कि अगर जाना होगा तो लड़ते-लड़ते जायेंगे. किसी देश का प्रधानमंत्री "शहीदी वाला" ऐसा वक्तव्य किसी सामान्य स्थिति में नहीं दे सकता. विश्व प्रसिद्द अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ऐसे स्वार्थी-फैसले अपनी छवि सुधारने के लिए ले रहे है अगर ऐसा माना लिया जाय कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. ध्यान देने योग्य है कि अभी हाल में ही उन्हें विदेशी मीडिया की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था. कल तक मनमोहन सिंह को अक्षम, निर्णय न करने वाले, उपलब्धि-विहीन साबित करते विदेशी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के सुर अचानक बदल गए. वॉल स्ट्रीट जरनल, वाशिंगटन टाइम्स, टाइम्स इत्यादि ने सरकार के इन कदमों का समर्थन करते हुए कहा है कि इससे सरकार की छवि बदलेगी.

सरकार अपने इन फैसलों को लेकर इसलिए निश्चिन्त है कि उसके पास सरकार चलाने के लिए पर्याप्त संख्या बल है और अगर कभी उस संख्या बल में कोई कमी आई तो उसके पास आर्थिक पैकेज और सीबीआई रूपी ऐसी कुंजी है जिसकी बदौलत वह किसी भी दल को समर्थन देने के लिए मजबूर कर सकती है. अगर इतने में भी बात न बनी और मध्यावधि चुनाव हो भी गए तो कांग्रेस द्वारा जनता को यह दिखाने के लिए हमने अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने की कोशिश तो की थी पर इन राजनैतिक दलों ने आर्थिक सुधार नहीं होने दिया का ऐसा भंवरजाल बुना जायगा कि आम-जनता उसमे खुद फस जायेगी. इतना ही नहीं अभी आने वाले दिनों सरकार संभव है सरकार आने वाले दिनों में इंश्योरेंस क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से लेकर पेंशन क्षेत्र में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश, एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी पर संविधान संशोधन विधेयक, विदेशी शिक्षा संस्थानों की अनुमति आदि जैसे निर्णय लेगी जिससे कि राजनैतिक दलों को यह समझने का मौका ही नहीं मिलेगा कि सरकार के किस - किस फैसले का वह विरोध करे. ऐसा करना सरकार की मजबूरी भी है क्योंकि इस वर्तमान सरकार के पास जनता को केवल भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के आरोपों पर जवाब देने के अलावा और कुछ है नहीं.

महंगाई बेकाबू हो चुकी है और इसकी की मार से आम जनता त्राहि - त्राहि कर रही है. महंगाई से निपटने के लिए सरकार सिर्फ जनता को  आश्वासन देने के लिए एक नयी तारीख देकर कुछ समय के लिए मामले को टाल देती है. सरकार के लिए महंगाई का मतलब कागजों पर जारी आंकड़ों से ज्यादा कुछ नहीं अगर ऐसा मान लिया जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. आम आदमी जो छोटे - मोटे व्यापार से अभी तक अपना परिवार पाल रहा था उसको बेरोजगार करने का सरकार ने अपने इस फैसले से पुख्ता इंतजाम कर लिया है क्योंकि खुदरे व्यापार से सीधे आम जनता का सरोकार है.  सरकार का तर्क है कि उसके इस कदम से करोडो लोगों को रोजगार मिलेगा जो कि सिर्फ बरगलाने वाला तर्क - मात्र  से ज्यादा कुछ  नहीं है क्योंकि उसके इस कदम से जितने लोगो को रोजगार मिलेगा उससे कई गुना ज्यादा लोगो की जैसे रेहडी-पटरी लगाने वाले,  फ़ल-सब्जी बेचने वाले, छोटे दुकानदार, इत्यादि प्रकार के मध्यम और छोटे व्यापारियों की रोजी-रोटी छिन जायेगी. इन छोटे व्यापारियों का क्या होगा , इस सवाल पर सरकार मौन है , और न ही सरकार के पास इनका कोई विकल्प है .

भारत जैसा देश जहां की आबादी लगभग सवा सौ करोड़ हो , आर्थिक सुधार की अत्यंत आवश्यकता है परन्तु आर्थिक सुधार भारतीयों के हितों को ध्यान में रखकर करना होगा न कि विदेशियों के हितो को ध्यान में रखकर . अतः सरकार जल्दबाजी में बिना किसी से सलाह किये चाहे वो राजनैतिक पार्टियाँ हो अथवा आम जनता लगातार फैसले लेकर अपने को मजबूत इच्छाशक्ति वाली सरकार दिखाना चाहती है जो कि इस सरकार की  हठ्धर्मिता का ही परिचायक है . बढ़ रहे वित्तीय घाटे और "पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं है" की आड़ में सरकार किसके इशारे पर तथा किसको खुश करने के लिये और साथ ही क्या छुपाने के लिए आर्थिक सुधार के नाम पर इतनी जल्दबाजी में इतने विरोधे के बावजूद  इतने बड़े - बड़े फैसले ले रही है असली मुद्दा यह है . क्योंकि बात चाहे सरकार द्वारा आर्थिक सुधारो के नाम पर बढाई गयी महंगाई की हो या डीजल और और घरेलू वस्तुओ की कीमतों में वृद्धि की हो अथवा विपक्ष के भारत बंद की हो , राजनेता तो राजनीति करते ही है परन्तु परेशानी तो आम जनता को ही होती है ऐसे में भला आम जनता जाये तो कहा जाये.

- राजीव गुप्ता, 9811558925

सर्वधर्म श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन

Sat, Sep 22, 2012 at 1:42 PM
23 से 29 सितम्बर तक विशेष आयोजन रोहिणी, दिल्ली में 
नई दिल्ली:तुलसी संस्था के सौजन्य और सतगुरू दर्शन धाम के सहयोग से दिनांक 23 से 29 सितम्बर 2012 तक श्री हनुमान मंदिर, सैक्टर-6 रोहिणी, दिल्ली-85 में श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। श्री अरविंद जी महाराज कथाव्यास होंगे। कथा दोपहर 3 बजे से प्रभु इच्छा (6 बजे) तक चलेगी। कार्यक्रम में दिगंबर नागा बाबा मांट मथुरा, महाराज चड़विंदा दास, श्री कंत महाराज एवंम देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले सर्वधर्म के संत महात्मा शिरकत करेंगे।तुलसी  की महासचिव कंचन गुप्ता और एक एनी वरिष्ठ पदाधिकारी अंकित राज गुप्ता की और से जरी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक कार्यक्रम का शुभारम्भ सौभाग्यशाली महिलाओं द्वारा मंगल कलश यात्रा (23 सितम्बर प्रातः 8 बजे) द्वारा किया जायेगा। सतगुरू दर्शन धाम की संगत निशान साहब के साथ यात्रा में शामिल होगी। पहले दिन कथा का महत्व बताया जाएगा। दूसरे दिन धु्रव चरित्र। तीसरे दिन नरसिंह व वामन अवतार। चैथे दिन रामावतार व नन्दोत्सव। पांचवे दिन गौवरधन लीला। छठे दिन रुकमणि मंगल। सातंवे दिन सुदामा चरित्र एवंम परिक्षित मोक्ष की कथा सुनाकर प्रसाद वितरण कर कथा विश्राम और 30 सितम्बर को हवन पूर्णाहूति होगी।
यदि आयोजन स्थल पर पहुँचाने में किसी तरह की कोई कठिनाई आए तो मोबाईल फोन नम्बर 9810234094 पर  या फिर एक एनी नम्बर 9868005599 पर सम्पर्क करके समय का समाधान पाया जा सकता है।  

Friday, September 14, 2012

हिंदी दिवस पर विशेष


राष्‍ट्रपति करेंगे पुरस्‍कार समारोह को संबोधित
कल 14 सितंबर 2012 को हिंदी दिवस के अवसर पर यहां विज्ञान भवन में आयोजित एक समारोह में राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी मुख्‍य अतिथि होंगे। समारोह की अध्‍यक्षता गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिन्‍दे करेंगे और गृह राज्‍य मंत्री श्री जीतेंद्र सिंह भी समारोह को सुशोभित करेंगे। 
समारोह में राज भाषा हिंदी से संबंधित विभिन्‍न क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट प्रर्दशन करने वाले महानुभावों को राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार प्रदान करेंगे। 
14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, और उल्‍लेख‍नीय है कि 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एकमत से हिंदी को राज भाषा घोषित किया था। इस ऐतिहासिक अवसर की स्‍मृति में हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 
(पत्र सूचना कार्यालय)      
                                       13-सितम्बर-2012 19:19 IST
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Wednesday, September 5, 2012

राष्‍ट्रपति ने यात्री सौर कार को हरी झंडी दी

120 किलो‍मीटर रफ्तार वाली यह कार पूरी तरह से पर्यावरण अनुकूल
राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज दिल्‍ली प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय-डीटीयू द्वारा निर्मित यात्री सौर कार को राष्‍ट्रपति भवन से हरी झंडी दिखाई।

यात्री सौर कार की रचना और निर्माण डीटीयू के एक दल ने किया हैं। इस दल में डीटीयू में इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं कम्‍यूनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के श्री धीरज मिश्रा के नेतृत्‍व में अलग-अलग शाखाओं के इंजीनियरिंग छात्र शामिल हैं। 120 किलो‍मीटर रफ्तार वाली यह कार पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है, जो कार्बन का उत्‍सर्जन नहीं करती है। इसमें दो लोगों के बैठने की व्‍यवस्‍था है लेकिन इसमें तीन सीटें और जोड़ी जा सकती है। वज़न कम रखने के लिए कार की बॉर्डी विशेष फाइबर से बनाई गई है। कार के ऊपरी हिस्‍से पर मोनो क्रिस्‍टलाइन सोलर सिलिकन सेल लगाये गए हैं ताकि यह अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का संग्रहण कर सके।

इस मौके पर डीटीयू के उप-कुलपति प्रोफेसर पी. बी. शर्मा ने बताया कि भारत में ऑटोमोबाइल का भविष्‍य सौर ऊर्जा और हाईब्रिड कारों में निहित है। उन्‍होंने कहा‍ कि डीटीयू भारत को सौर ऊर्जा वाहन और सौर ऊर्जा उत्‍पादन व्‍यवस्‍था के प्रति समर्पित है। सौर यात्री कार के क्षेत्र में डीटीयू ने पहला कदम वर्ष 2011 में ऑस्‍ट्रेलिया में आयोजित विश्‍व सौर चुनौती कार्यक्रम में भारत की पहली सौर कार के साथ शामिल होकर रखा था। (पीआईबी)
04-सितम्बर-2012 18:56 IST 

Thursday, August 23, 2012

देश की एकता-अखंडता खतरे में ?//राजीव गुप्ता

 भारत-विभाजन जैसी वीभत्स त्रासदी से सबक क्यों नहीं?
                                                                                                                              तस्वीर जनोक्ति से साभार 
भारत इस समय किसी बड़ी संभावित साम्प्रदायिक-घटना रूपी ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा हुआ प्रतीत हो रहा है. देश की एकता-अखंडता खतरे में पड़ती हुई नजर आ रही है. देश की संसद में भी आतंरिक सुरक्षा को लेकर तथा सरकार की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिंह खड़े किये जा रहे है. सांसदों की चीख-पुकार से सरकार की अब जाकर नीद खुली है. सरकार ने आनन्-फानन में देश में मचे अब तक के तांडव को पाकिस्तान की करतूत बताकर अपना पल्ला झड़ने की कोशिश करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के नाम पर भारत के गृहमंत्री ने पाकिस्तान के गृहमंत्री से रविवार को बात कर एक रस्म अदायगी मात्र कर दी और प्रति उत्तर में पाकिस्तान ने अपना पल्ला झाड़ते हुए भारत को आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलना बंद करने की नसीहत देते हुए यहाँ तक कह दिया कि भारत के लिए सही यह होगा कि वह अपने आंतरिक मुद्दों पर पर ध्यान दे और उन पर काबू पाने की कोशिश करे. अब सरकार लाख तर्क दे ले कि इन घटनाओ के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, परन्तु सरकार द्वारा समय पर त्वरित कार्यवाही न करने के कारण जनता उनके इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रही है इसलिए अब प्रश्न चिन्ह सरकार की नियत पर खड़ा हो गया है क्योंकि असम में 20 जुलाईं से शुरू हुईं सांप्रादायिक हिंसा जिसमे समय रहते तरुण गोगोईं सरकार ने कोई बचाव-कदम नहीं उठाए मात्र अपनी राजनैतिक नफ़ा-नुक्सान के हिसाब - किताब में ही लगी रही. परिणामतः वहां भयंकर नर-संहार हुआ और वहा के लाखो स्थानीय निवासियों ने अपना घर-बार छोड़कर राहत शिवरों में रहने के लिए मजबूर हो गए.
असम के विषय में यह बात जग-जाहिर है कि असम और बंग्लादेश के मध्य की 270 किलोमीटर लम्बी सीमा में से लगभग 50 किलोमीटर तक की सीमा बिलकुल खुली है जहा से अवैध घुसपैठ  होती है और इन्ही अवैध घुसपैठों के चलते लम्बे समय से वहा की स्थानीय जनसंख्या का अनुपात लगातार नीचे गिरता जा रहा है. यह भी सर्वविदित है कि असम में हुई हिंसा हिन्दू बनाम मुस्लिम न होकर भारतीय बनाम बंग्लादेशी घुसपैठ का है. जिसकी आवाज़ कुछ दिन पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी बुलंद की थी और यह सरकार से मांग की थी कि असम से पलायन कर गए लोगों की स्थिति कश्मीरी पंडितों जैसी नहीं होनी चाहिए . ध्यान देने योग्य है कि 1985 में तत्कालीन प्राधानमंत्री राजीव गांधी के समय असम में यह समझौता हुआ था कि बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाय परन्तु इस विषय के राजनीतिकरण के चलते  दुर्भाग्य से इस समझौते के प्रावधानों को कभी भी गम्भीरता से लागू नहीं किया गया. परिणामतः असम में 20 जुलाईं से उठी चिंगारी ने आज पूरे देश को अपनी चपेट में लिया है.
दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के साथ-साथ  महाराष्ट्र से उत्तर-पूर्व के हजारो छात्रों का वहा से पलायन हो रहा है और अब यह सिलसिला भारत के दूसरो शहरो में भी शुरू हो जायेगा इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. प्रधानमंत्री संसद में यह लाख तर्क देते रहे कि हर देशवासी की तरह पूर्वोत्तर के लोगों को देश के किसी भी भाग में रहने, पढ़ाईं करने और जीविकोपार्जन करने का अधिकार है. पर सच्चाई उनके इस तर्क से अब कोसों दूर हो चुकी है. देश की जनता को उनके तर्क पर अब विश्वास नहीं हो रहा है. सरकार के सामने अब मूल समस्या यही है कि वो जनता को विश्वास कैसे दिलाये. भारतवर्ष सदियों से अपने को विभिन्नता में एकता वाला देश मानता आया है क्योंकि यहाँ सदियों से अनेक मत-पन्थो के अनुयायी रहते आये है. परन्तु समस्या विकराल रूप तब धारण कर लेती है जब एक विशेष समुदाय के लोग देश की शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में अपना विश्वास करना छोड़ कर भारत की एकता - अखंडता पर प्रहार करने लग जाते है और वहा के दूसरे समुदाय की धार्मिक तथा राष्ट्रभक्ति की भावनाओ को कुचलने का प्रयास करने लग जाते है क्योंकि हर साम्प्रदायिक-घटना किसी समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय की भावनाओ के आहत करने से ही उपजती है. अभी हाल में ही दिल्ली के सुभाष पार्क , मुम्बई के आज़ाद मैदान, कोसीकला, बरेली जैसे शहरो में हुई घटनाये इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.   

मुम्बई में बने शहीदों के स्मारकों को तोडा गया, मीडिया की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस पर हमला किया गया जिसमे गंभीर रूप से घायल हो गए. इतना ही नहीं यह आग रांची, बैंगलोर जैसे अनेक शहरों तक जा पहुची यहाँ तक की उत्तर प्रदेश के लखनऊ, इलाहाबाद जैसे कई शहर भी इस आग में झुलस गए परिणामतः प्रशासन द्वारा वहा कर्फ्यू लगा दिया गया. असल में अब समस्या यह है नहीं किस राज्य में किस समुदाय द्वारा सांप्रदायिक - हिंसा की जा रही है अथवा उन्हें ऐसा करने के लिए कौन उकसा रहा है जिससे उन्हें ऐसा करने का बढ़ावा मिल रहा है अपितु अब देश के सम्मुख विचारणीय  प्रश्न यह है कि इतिहास अपने को दोहराना चाह रहा है क्या ? सरकार भारत-विभाजन जैसी वीभत्स त्रासदी वाले इतिहास से सबक क्यों नहीं ले रही है ?  क्या सरकार खिलाफत-आन्दोलन और अलास्का की घटना की प्रतिक्रिया स्वरुप भारत में हुई साम्प्रदयिक-घटना जैसी किसी बड़ी घटना का इंतज़ार कर रही है ? यह बात सरकार को ध्यान रखनी चाहिए कि जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लिया करता उसका भूगोल बदल जाया करता है इस बात का प्रमाण भारत का इतिहास है. एक समुदाय द्वारा देश में मचाये जा रहे उत्पात पर निष्पक्ष कही जाने वाली मीडिया की अनदेखी और सरकार की चुप्पी से भारत के बहुसंख्यको में अभी काफी मौन-रोष पनप रहा है इस बात का सरकार और मीडिया को ध्यान रखना चाहिए और समय रहते इस समस्या को नियंत्रण में करने हेतु त्वरित कार्यवाही करना चाहिए. 
लेखक:राजीव गुप्ता
यह एक कटु सत्य है कि विभिन्न समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द स्थापित करने की राह में सांप्रदायिक दंगे एक बहुत बड़ा रोड़ा बन कर उभरते है और साथ ही मानवता पर ऐसा गहरा घाव छोड़ जाते है जिससे उबरने में मानव को कई - कई वर्ष तक लग जाते है. ऐसे में समुदायों के बीच उत्पन्न तनावग्रस्त स्थिति में किसी भी देश की प्रगति कदापि संभव नहीं है. आम - जन को भी देश की एकता – अखंडता और पारस्परिक सौहार्द बनाये रखने के लिए ऐसी सभी देशद्रोही ताकतों को बढ़ावा न देकर अपनी सहनशीलता और धैर्य का परिचय देश के विकास में अपना सहयोग करना चाहिए. आज समुदायों के बीच गलत विभाजन रेखा विकसित  की जा रही है. विदेशी ताकतों की रूचि के कारण स्थिति और बिगड़ती जा रही  है जो भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक है. अतः अब समय आ गया है देश भविष्य में ऐसी सांप्रदायिक घटनाये न घटे इसके लिए जनता स्वयं प्रतिबद्ध हो.
-    लेखक:राजीव गुप्ता, 9811558925


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