Friday, May 30, 2014

श्री चंद्रबाबू नायडू ने की सुश्री उमा भारती से मुलाकात

Shri Chandra Babu Naidu calls on Sushri Uma Bharati
The Chief Minister-elect. of Andhra Pradesh, Shri Chandra Babu Naidu calls on the Union Minister for Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation, Sushri Uma Bharati, in New Delhi on May 30, 2014. (PIB)
आंध्र प्रदेश के मनोनीत मुख्यमंत्री श्री चंद्रबाबू नायडू 30 मई, 2014 को नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरूद्धार मंत्री सुश्री उमा भारती से मुलाकात करते हुए।   

Monday, May 26, 2014

बाथरूम में उसने कैरोसिन का तेल अपने ऊपर डाल कर आग लगा ली

 बलात्कारी जिम्मेवार हैं और हम भी जिम्मेवार हैं 
यह तस्वीर अध्यात्म से साभार
अखबारों में खबर थी कि गुंडे बंबई में एक स्त्री को उसके पति और बच्चों से छीनकर ले गए और धमकी दे गए कि अगर पुलिस को खबर की तो पत्नी का खात्मा कर देंगे। रात भर पति परेशान रहा, सो नहीं सका। कैसे सोएगा? 
महिंदरपाल विद्रोही की वाल से साभार
प्रतीक्षा करता रहा! सुबह-सुबह पत्नी आई। इसके पहले कि पति कुछ बोले, पत्नी ने कहा कि पहले मैं स्नान कर लूँ, फिर पूरी कहानी बताऊँ। वह बाथरूम में चली गई। वहाँ उसने कैरोसिन का तेल अपने ऊपर डाल कर आग लगा ली और खत्म हो गई।
अब सब तरफ निंदा हो रही है उन बलात्कारियों की। निंदा होनी चाहिए।
लेकिन ये लक्षण हैं। ये मूल बीमारियाँ नहीं हैं। बलात्कारियों की अगर तुम ठीक-ठाक खोज करोगे तो इनके पीछे
महात्मागण मिलेंगे मूल कारण में। और उनकी कोई फिक्र नहीं करता। वही महात्मागण निंदा कर रहे हैं कि पतन हो गया, कलियुग आ गया, धर्म भ्रष्ट हो गया। इन्हीं नासमझों ने यह उपद्रव खड़ा करवा दिया है। जब तुम काम को इतना दमित करोगे तो बलात्कार होंगे। अगर काम को थोड़ी सी स्वतंत्रता दो, अगर काम को तुम जीवन की एक सहज सामान्य साधारण चीज समझो, तो बलात्कार अपने आप बंद हो जाए। क्योंकि न होगा दमन, न होगा बलात्कार।
अब ये जो गुंडे इस स्त्री को उठा ले गए, ये स्वभावतः ऐसे लोग नहीं हो सकते जिन्होंने जीवन में स्त्री का प्रेम जाना हो। ये ऐसे लोग हैं जिनको स्त्री का प्रेम नहीं मिला। और शायद इनको स्त्री का प्रेम मिलेगा भी नहीं। स्त्री का प्रेम ये जबरदस्ती छीन रहे हैं। जबरदस्ती छीनने को कोई तभी तैयार होता है जब उसे सहज न मिले। और प्रेम का तो मजा तब है जब वह सहज मिले। जबरदस्ती लिए गए प्रेम का कोई मजा ही नहीं होता, कोई अर्थ ही नहीं होता। तो सहज तो प्रेम के लिए सुविधा नहीं जुटाने देते तुम। और अगर सहज प्रेम की सुविधा जुटाओतो कहते हो- समाज भ्रष्ट हो रहा है। ये समाज भ्रष्ट हो रहा है चिल्लाने वाले लोग ही बलात्कारियों को पैदा करते हैं। और फिर दूसरी तरफ भी गौर करो। किसी ने भी इस तरफ गौर नहीं किया। यह स्त्री घर आई, इसने आग लगा कर अपने को मार डाला, इसकी निंदा किसी ने भी नहीं की। बलात्कारियों की निंदा की। जरूर की जानी चाहिए।
लेकिन इस स्त्री ने भी मामले को बहुत भारी समझ लिया। क्योंकि इसको भी समझाया गया है, इसका सब सतीत्व नष्ट हो गयां।
क्या खाक नष्ट हो गया! सतीत्व आत्मा की बात है, शरीर की बात नहीं। क्या नष्ट हो गया? जैसे आदमी धूल से भर जाता है तो स्नान कर लेता है, तो कोई शरीर नष्ट थोड़े ही हो गया, कि शरीर गंदा थोड़े ही हो गया।
यह गलत हुआ। मैं इसके समर्थन में नहीं हूँ कि ऐसा होना चाहिए। लेकिन मैं इसके भी विरोध में हूँ कि किसी स्त्री को हम इस हालत में खड़ा कर दें कि उसको आग लगा कर मरना पडे। इसके लिए हम भी जिम्मेवार हैं। बलात्कारी जिम्मेवार हैं और हम भी जिम्मेवार हैं। क्योंकि अगर यह स्त्री जिंदा रह जाती तो इसको जीवन भर
लांछन सहना पड़ता। जो इसको लांछन देते, वे सब इसके पाप में भागीदार हुए। अगर यह स्त्री जिंदा रह
जाती तो इसका पति भी इसको नीची नजर से देखता, इसके बच्चे भी इसको नीची नजर से देखते, इसके पड़ोसी भी कहते कि अरे यह क्या है, दो कौड़ी की औरत! हाँ, अब वे सब कह रहे हैं कि सती हो गई! बड़ा गजब का काम किया! बड़ा महान कार्य किया! अब सती का चौरा बना देंगे। चलो एक और ढांढन सती हो गई! अब इनकी झाँकी सजाएँगे। वही मूढ़ता।
तुम सब जिम्मेवार हो इस हत्या में। बलात्कार करवाने में जिम्मेवार हो। इस स्त्री की हत्या में जिम्मेवार हो। इस स्त्री की भी निंदा होनी चाहिए। इसमें ऐसा क्या मामला हो गया? इसका कोई कसूर न था। यह कोई स्वेच्छा से उनके साथ गई नहीं थी। अगर कोई जबरदस्ती तुम्हारे बाल काट ले रास्ते में, तो क्या तुम आग लगा कर अपने को मार डालोगे? कि हमारा सब भ्रष्ट हो गया! हमारा मामला ही खतम हो गया!       --ओशो

Thursday, May 1, 2014

लोग कहते हैं तो फ़िर ठीक ही कहते होँगे

भ्रष्टाचार के "मजबूत स्तंभों" पर टिकी  भारतीय शासन व न्याय व्यवस्था      -मनी राम शर्मा
भारत का सरकारी तंत्र तो सदा से भी भ्रष्ट और निकम्मा रहा है इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक द्धारा मुद्रा प्रेषण प्रक्रिया में प्रारंभ में पुलिस की सीधी सेवाएं ली जाती थी किन्तु पुलिस स्वयं पेटियों  को तोडकर धन चुरा लेती और किसी की भी जिम्मेदारी  तय नहीं हो पाती थी। अत: रिजर्व बैंक को विवश होकर अपनी नीति में परिवर्तन करना पडा  और अब मुद्रा प्रेषण को मात्र पुलिस का संरक्षण ही होता है मुद्रा स्वयं बैंक स्टाफ के कब्जे में ही रहती है| इससे सम्पूर्ण पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता का अनुमान लगाया जा सकता है| ठीक इसी प्रकार राजकोष का कार्य- नोटों सिक्कों आदि का लेनदेन,विनिमय  आदि मुख्यतया सरकारी कोषागारों का कार्य है| राजकोष का अंतिम नियंत्रण  रिजर्व बैंक करता रहा है किन्तु सरकारी राजकोषों के कार्य में भारी अनियमितताएं रही और वे समय पर रिजर्व बैंक को लेनदेन की कोई रिपोर्ट भी नहीं भेजते थे  क्योंकि रिपोर्ट भेजने में कोषागार स्टाफ का कोई हित निहित नहीं था और बिना हित साधे सरकारी  स्टाफ की कोई कार्य करने की परिपाटी  नहीं रही है।  अत: रिजर्व बैंक को विवश होकर यह कार्य भी सरकारी कोषागारों से लेकर  बैंकों को सौंपना  पडा और आज निजी क्षेत्र के बैंक भी यह कार्य कर रहे हैं | अर्थात निजी बैंकों का स्टाफ सरकारी स्टाफ से ज्यादा जिम्मेदार और विश्वसनीय है। अत: यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि राज्य तंत्र  अब भ्रष्ट हो गया है अपरिपक्व होगा, यह तो सदा से ही भ्रष्ट रहा है किन्तु  आजादी के साथ इसके पोषण में तेजी अवश्य आई है।  
 
भारत में कानून बनाते समय देश की विधायिकाएं उसमें कई छिद्र छोड़ देती हैं जिनमें से शक्ति प्रयोग करने वाले अधिकारियों के पास रिसरिस कर रिश्वत आती रहती है और दोषी लोग स्वतंत्र विचरण करते व आम जनता का खून चूसते रहते हैं| देश में शासन द्वारा आज भी एकतरफा कानून बनाए जाते हैं व जनता से कोई फीडबैक नहीं लिया जाता| आम जनता से प्राप्त सुझाव और शिकायतें रद्दी की टोकरी की विषय वस्तु  बनते हैं और देश के शासन के संचालन की शैली  तानाशाही ने मेल खाती है जहां कानून थोपने का एक तरफा संवाद  ही सरकार की आधारशीला होती है| जनता को भारत में तो पांच वर्ष में मात्र एक दिन मत देने का अधिकार है जबकि लोकतंत्र जनमत पर आधारित शासन प्रणाली का नाम है|  भारत भूमि पर सख्त कानून बनाने का भी तब तक कोई शुद्ध लाभ नहीं होगा जब तक कानून लागू करने वाले लोगों को इसके प्रति जवाबदेय नहीं बनाया जाता| सख्त कानून बनाए जाने से भी लागू  करने वाली एजेंसी के हाथ और उसकी दोषी के साथ मोलभाव करने की क्षमता में वृद्धि होगी और भ्रष्टाचार  की गंगोत्री अधितेज गति से बहेगी| जब भी कोई नया सरकारी कार्यालय खोला जाता है तो वह सार्वजनिक धन की बर्बादी, जन यातना और भ्रष्टाचार का नया केंद्र साबित होता है, इससे अधिक कुछ नहीं|   एक मामला जिसमें पुलिस 1000 रूपये में काम निकाल सकती है , वही मामला अपराध शाखा के पास होने पर 5000 और सी बी आई के पास होने पर 10000 लागत आ सकती है किन्तु अंतिम परिणाम में कोई ज्यादा अंतर पड़ने की संभावना नहीं है| जहां जेल में अवैध  सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए साधारण जेल में 1000-2000 रूपये सुविधा शुल्क लिया जाता है वही सुविधा तिहाड़ जैसी सख्त कही जाने वाली जेल में 10000 रूपये में मिल जायेगी|           

सरकार को भी ज्ञान है कि उसका तंत्र भ्रष्टाचार  में आकंठ डूबा हुआ है अत: कर्मचारियों को वेतन के अतिरिक्त कुछ देकर ही काम करवाया जा सकता है फलत: सरकार भी काम करवाने के लिए कर्मचारियों को विभिन्न प्रलोभन देती है | डाकघरों में बुकिंग क्लर्क और डाकिये को डाक बुक करने व बांटने के लिए वेतन के अतिरिक्त प्रति नग अलग से प्रोत्साहन  राशि दी जाती है| गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में भी चेक आदि बनाने के लिए सरकार अपने कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि देती हैं| जहां इस प्रकार कोई लाभ देने का कोई रास्ता नहीं बचा हो वहां कर्मचारियों के  विपरीत व आपसे में ट्रांसफर और प्रतिनियुक्ति दोनों एक साथ अर्थात  ए को बी के स्थान पर और बी को ए के स्थान पर अनावश्यक ट्रान्सफर व प्रतिनियुक्त करके दोनों को भत्तों का भुगतान कर उन्हें उपकृत किया जाता है| तब जनता को ऐसी अविश्वसनीय न्याय और शासन व्यवस्था में क्यों धकेला जाए ? 

देश के न्याय तंत्र से जुड़े लोग संविधान में रिट याचिका के प्रावधान को  बढ़ा चढ़ाकर  गुणगान कर रहे हैं जबकि रिट याचिका तो किसी के अधिकारों के अनुचित व विधिविरुद्ध अतिक्रमण के विरुद्ध दायर की जाती है और कानून को लागू करवाने की प्रार्थना की जाती है | क्या न्यायालय के आदेश के बिना कानून लागू नहीं किया जा सकता या उल्लंघन करने वाले लोक सेवकों ( वास्तव में राजपुरुषों) को कानून का उल्लंघन करने का कोई विशेषाधिकार या लाइसेंस प्राप्त है ? भारतीय दंड संहिता की धारा 166 में किसी लोक सेवक द्वारा कानून के निर्देशों का उल्लंघन कर अवैध रूप से हानि पहुंचाने के लिए दंड का प्रावधान है किन्तु खेद का विषय है कि इतिहास में आज तक किसी भी संवैधानिक न्यायालय द्वारा  रिट याचिका में किसी लोक सेवक के अभियोजन के आदेश मिलना कठिन  हैं | जब तक दोषी को दंड नहीं दिया जाता तब तक यह उल्लंघन का सिलसिला किस प्रकार रुक सकता है और इसे किस प्रकार पूर्ण न्याय माना जा सकता है जब दोषी को कोई दंड दिया ही नहीं जाय क्योंकि वह राजपुरुष है | किन्तु सकार को भी ज्ञान है कि यदि दोषी राजपुरुषों को दण्डित किया जाने लगा तो उसके लिए शासन संचालन ही कठिन हो जाएगा क्योंकि सत्ता में शामिल बहुसंख्य  राजपुरुष अपराधी हैं|  इस प्रकार रिट याचिका द्वारा मात्र पीड़ित के घावों पर मरहम तो लगाया जा  सकता  है किन्तु दोषी को दंड नहीं दिया जाता| क्या यह राजपुरुषों का पक्षपोषण नहीं है? यह स्थिति भी न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि पर एक यक्ष प्रश्न उपस्थित करती है |  हमारे  संविधान निर्माताओं ने रिट क्षेत्राधिकार को सर्वसुलभ बनाने के लिए अनुच्छेद 32(3) में यह शक्ति जिला न्यायालयों के स्तर पर देने  का प्रावधान किया था किन्तु आज तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है अर्थात रिट याचिका को संवैधानिक न्यायालयों का एक मात्र विशेषाधिकार तक सीमित कर दिया गया है|  हमारे पडौसी राष्ट्र पकिस्तान में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का अधिकार सत्र न्यायालयों को प्राप्त है जबकि उत्तरप्रदेश में  तो सत्र न्यायालयों से अग्रिम जमानत का अधिकार भी 1965 में ही छीन लिया गया था| अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में लोकतंत्र किस सीमा तक प्रभावी है|  भारत में तो आज भी शक्ति का विकेंद्रीकरण नहीं हुआ है और एक व्यक्ति या आनुवंशिक शासन का आभास होता है |

यदि देश के कानून को निष्ठापूर्वक लागू किया जाए तो लोक सेवकों के अवैध कृत्यों और अकृत्यों  से निपटने के लिए अवमान कानून व भारतीय दंड संहिता की धारा 166 अपने आप में पर्याप्त हैं और रिट याचिका की कोई मूलभूत आवश्यकता महसूस नहीं होती | किन्तु देश के न्याय तंत्र से जुड़े लोगों ने तो मुकदमेबाजी को द्रोपदी के चीर की भांति बढ़ाना है अत: वे सुगम और सरल रास्ता कैसे अपना सकते हैं| मुकदमेबाजी को घटना वे आत्मघाती समझते हैं| देश के न्यायाधीशों का तर्क होता है कि देश में मुक़दमे  बढ़ रहे हैं किन्तु यह भी तो दोषियों के प्रति उनकी अनावश्यक उदारता का ही परिणाम है और कानून का उल्लंघन करनेवालों में दण्डित होने का कोई भय शेष ही नहीं रह गया है| जब मध्य प्रदेश राज्य का बलात्कार का एक मुकदमा मात्र 7 माह में सुप्रीम कोर्ट तक के स्तर को पार कर गया और दोषियों को अन्तिमत: सजा हो गयी तो ऐसे ही अन्य मुक़दमे क्यों बकाया रह जाते हैं|

भारत में पुलिस संगठन का गठन जनता को कोई सुरक्षा  व संरक्षण देने के लिए नहीं किया गया था अपितु यह तो शाही लोगों की शान के प्रदर्शन के लिए गठित, जैसा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा है, देश का सबसे बड़ा अपराधी समूह है|  पुलिस बलों में से मात्र 25 प्रतिशत  स्टाफ ही थानों में तैनात  है व शेष बल तो इन शाही लोगों को वैध और अवैध सुरक्षा देने व बेगार के लिए कार्यरत है| कई मामलों में तो नेताजी के घर भेंट  की रकम भी पुलिस की गाडी में  पहुंचाई  जाती है जिससे कि रकम को मार्ग में कोई ख़तरा नहीं हो| लोकतंत्र की रक्षा के लिए इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सुरक्षा देने के स्थान  पर वास्तव में तो इनकी गतिविधियों की गुप्तचरी कर इन पर चौकसी रखना ज्यादा आवश्यक है|  अभी हाल ही में उतरप्रदेश राज्य में एक ऐसा मामला प्रकाश में आया है जहां सरकार ने एक विधायक और उसकी पुत्री को  सुरक्षा के लिए 2-2 गनमेन निशुल्क उपलब्ध करवा रखे थे व इन  विधायक महोदय पर 60 से अधिक आपराधिक मुकदमे चल रहे थे|  इनके परिवार में 5-6 शास्त्र लाइसेंस अलग से थे | इससे स्पष्ट है कि किस प्रकार के व्यक्तियों को निशुल्क राज्य सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाती है और जनता के धन का एक ओर किस प्रकार दुरूपयोग होता है व दूसरी ओर पुलिस बलों की कमी बताकर आम जन की कार्यवाही में विलम्ब किया जाता है | चुनावों के समय आचार संहिता के कारण इस आरक्षित स्टाफ को महीने भर के लिए मैदानों में लगा दिया जाता है | जब महीने भर इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में कटौती  से इन्हें कोई जोखिम नहीं है तो फिर अन्य समय कैसा और क्यों जोखिम हो सकता है| किन्तु पुलिस जनता से वसूली करती है और संरक्षण प्राप्त करने के लिए ऊपर तक भेंट पहुंचाती है अत: यदि कार्यक्षेत्र में स्टाफ बढ़ा दिया गया तो इससे यह वसूली राशि बंट जायेगी और ऊपर पहुँचने वाली राशि में कटौती होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता| इस कारण पुलिस थानों में स्टाफ की हमेशा कृत्रिम कमी बनाए रखी जाती है और महानगरों में  तो मात्र 10-15 प्रतिशत   स्टाफ ही पुलिस थानों  में तैनात है| फिर भी पुलिस थानों का स्टाफ भी इस कमी का कोई विरोध नहीं करता और बिना विश्राम किये लम्बी ड्यूटी देते रहते हैं कि ज्यादा स्टाफ आ गया तो माल के बंटाईदार बढ़ जायेंगे|

पुलिस अधिकारियों की मीटिंगों और फोन काल का विश्लेष्ण किया जाए तो ज्ञात होगा कि उनके समय का महत्वपूर्ण भाग तो संगठित अपराधियों, राजनेताओं और दलालों से वार्ता करने में लग जाता है|  पुलिस के मलाईदार पदों के विषय में एक रोचक मामला सामने आया है जहां असम में एक प्रशासनिक अधिकारी को जेल महानिरीक्षक लगा दिया गया और बाद में सरकार ने उसका स्थानान्तरण शिक्षा विभाग में करना चाहा तो वे अधिकारी महोदय स्थगन लेने उच्च  न्यायालय चले गए|  बिहार  के एक पुलिस उपनिरीक्षक के पास उसके अधीक्षक से ही अधिक एक अरब रूपये की सम्पति पाई गयी थी| वहीं शराब ठेकेदार से 10 करोड़ रूपये वसूलने के  आरोप में पुलिस उपमहानिरीक्षक  को निलंबित भी किया गया था| वास्तव में पुलिस अधिकारी का पद तो टकसाल रुपी वरदान है  जो भाग्यशाली –भेंट-पूजा   में विश्वास करने वाले लोगों को ही नसीब हो पाता है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कहा भी है कि पंजाब पुलिस में कोई भी भर्ती बिना पैसे के नहीं होती है| अब गृह मंत्री और पुलिस महानिदेशक की सम्पति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है|  इन तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि इन पदों को तो ऊँचे दामों पर नीलाम किया जा सकता है अथवा किया जा रहा है व  वेतन देने की कोई आवश्यकता नहीं है|  भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां भी पहले परिवादी से वसूल करती हैं और बाद में सुविधा देने के लिए अभियुक्त का दोहन करती हैं या सुरक्षा देने के लिए नियमित हफ्ता वसूली करती हैं अन्यथा कोई कारण नहीं कि इतनी बड़ी रकम वसूलने वाला लोक सेवक लम्बे समय तक छिपकर, सुरक्षित व निष्कंटक नौकरी करता रहे या इसके विरुद्ध कोई शिकायत प्राप्त ही नहीं हुई हो | आज भारतीय न्यायतंत्र  एक अच्छे उद्योग के स्वरुप में संचालित है और इसमें व्यापारी वर्ग, जो प्राय: मुकदमेबाजी से दूर रहता है,  भी इसमें उतरने को   लालायित है व  बड़ी संख्या में व्यापारिक पारिवारिक पृष्ठभूमिवाले लोग  पुलिस अधिकारी, न्यायिक अधिकारी, अभियोजक और वकील का कार्य कर इसे  एक चमचमाते  उद्योग का दर्जा दे रहे हैं|

Thursday, April 3, 2014

आम चुनाव 2014:


03-अप्रैल-2014 15:51 IST
विशेष वेब-पोर्टल की शुरूआत और संदर्भ पुस्तिका का विमोचन
The Principal Director General (M&C), Press Information Bureau, Smt. Neelam Kapur launching the PIB’s special web-portal for General Elections 2014, in New Delhi on April 03, 2014.
पत्र सूचना कार्यालय की प्रधान महानिदेशक (मीडिया एवं संचार), श्रीमती नीलम कपूर 3 अप्रैल, 2014 को नई दिल्ली में पत्र सूचना कार्यालय के विशेष वेब-पोर्टल की शुरूआत करते हुए।
नई दिल्ली: 3 अप्रैल 2014: (पीआईबी): 
देश में 16वीं लोकसभा के प्रतिनिधियों का चयन करने के लिए आम चुनाव होने जा रहे हैं। पत्र सूचना कार्यालय ने इस विशाल आयोजन के बारे में सूचना उपलब्ध कराने के लिए कई कदम उठाने की योजना बनाई है। 

आम चुनाव से जुड़े विविध पहलुओं पर कई तथ्य पत्र, संदर्भ सामग्री और लेख पहले ही जारी किए जा चुके हैं। संदर्भ सामग्री में 15वीं लोकसभा के चुनावों (2009 के आम चुनाव) पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए पिछले चुनावों के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत और गहन विश्लेषण किया गया है। राज्यवार तथ्य पत्र जारी किए गए हैं, जो विभिन्न राज्यों के मतदाताओं, संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों तथा पिछले चुनावों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। 

आम चुनावों से संबंधित बहुत सारे विशेष लेख भारत निर्वाचन आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों से प्राप्त हुए हैं। ये लेख "भारत में निर्वाचन प्रणाली का विकास", "भारत में चुनाव कानून", "जन-प्रतिनिधित्व कानून 1952 की मुख्य विशेषताएं", मतदाता जागरूकता के लिए "एसवीईईपी कार्यक्रम " जैसे विषयों पर हैं। इन विशेष लेखों में एनओटीए और वीवीपीएटी जैसी नई बातें मीडिया के लिए दिशा निर्देश, पेड न्यूज, चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव-उपरांत सर्वेक्षण जैसे विषय भी शामिल किए गए हैं। 

पत्र सूचना कार्यालय में की प्रधान महानिदेशक श्रीमती नीलम कपूर ने आज "आम चुनाव-2014 : संदर्भ पुस्तिका" का विमोचन किया। यह संदर्भ पुस्तिका पिछले चुनावों और आम चुनावों से संबंधित नवीनतम प्रावधानों का सार-संग्रह है। अंग्रेजी और हिन्दी के अलावा यह संदर्भ पुस्तिका 11 क्षेत्रीय भाषाओं - असमी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगू और उर्दू में भी उपलब्ध कराई जाएगी। 

साथ ही, पत्र सूचना कार्यालय ने आम चुनाव-2014 को समर्पित एक वेब पोर्टल : pib.nic.in/elections2014 की शुरूआत की है। इसका इस्तेमाल भारत निर्वाचन आयोग के महत्वपूर्ण निर्देशों, आदेशों और प्रेस विज्ञप्तियों के प्रसार के लिए किया जाएगा। संदर्भ पुस्तिका भी इस पोर्टल पर उपलब्ध होगी। मतगणना वाले दिन यानी 16 मई, 2014 को इस पोर्टल का इस्तेमाल भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए वास्तविक आंकड़ों के आधार पर आधिकारिक रूझानों और नतीजों का प्रसार करने के लिए भी किया जाएगा। ये रूझान और नतीजे एसएमएस के माध्यम से सोशल मीडिया के साथ भी साझा किए जाएंगे। 

परिणामों की घोषणा के बाद पत्र सूचना कार्यालय 16वें आम चुनावों का विस्तार से विश्लेषण करेगा और बाद में उसका संकलन भी जारी किया जाएगा।  

वि.कासोटिया/एएम/आरके/एमएस-1302

Saturday, March 15, 2014

दिल्ली में होने वाली बेजबरूआ समिति की बैठकें स्थगित

15-मार्च-2014 20:03 IST
नई दिल्ली में 18 से 24 मार्च 2014 के बीच होनी थीं बैठकें
नई दिल्ली: 15 मार्च 2014: (पीआईबी):
पूर्वोत्तर के लोगों की विभिन्न चिंताओं पर विचार के लिए पूर्वोत्तर परिषद के सदस्य श्री एम.पी.बेजबरूआ की अध्यक्षता में समिति की नई दिल्ली में 18 से 24 मार्च 2014 के बीच निर्धारित बैठकें स्थगित कर दी गयी हैं।

समिति का दिल्ली में रह रहे पूर्वोत्तर राज्यों के विधार्थियों/पेशेवरों और अन्य विभिन्न लोगों, गैर-सरकारी संगठनों, विधार्थी संगठनों और अन्य संघों के साथ विचार-विमर्श कर उनसे सुझाव प्राप्त करने का कार्यक्रम था।

देश के विभिन्न भागों विशेष तौर पर महानगर क्षेत्रों में रह रहे पूर्वोत्तर राज्यों से आए लोगों की अलग-अलग किस्म की चिंताओं पर विचार करने के लिए पिछले महीने केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने समिति का गठन किया था। समिति से सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले एहतियाती उपायों का सुझाव देने को कहा गया था।

Tuesday, February 25, 2014

निरंकारी बाबा का 60वां जन्मदिवस

वृक्षारोपण एवं सफाई अभियान से मनाया 60वां जन्मदिवस 
संत निरंकारी कालोनी, दिल्ली 23 फ़रवरी 2014: (कृपा सागर//सतपाल सोनी//दिल्ली स्क्रीन):
जब सियासतदान अपने सियासी खेलों में और कारोबारी अपने अपने कारोबारों में मसरूफ थे उस समय कुछ गिने चुने लोग पर्यावरण की भी चिंता कर रहे थे तांकि आज की पीढ़ी को सवच्छ जीवन और तंदरुस्ती देने के साथ साथ भविष्य को भी सुरक्षित किया जा सके। निरंकारी मंडल से इन जुड़े इन लोगों ने अपने बाबा का जन्म दिन वृक्षारोपण करके मनाया।
बाबा जी ने स्वयं किया उद्घाटन
मिशन के द्वारा जहाँ पर जीवन में आध्यात्मिकता को मजबूत करने के लिये योगदान दिये जाते है वहीं हर नागरिक की भांति अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाता है। इसीलिए प्रत्येक वर्ष की तरह आज भी देश तथा विश्वभर में वृक्षारोपण तथा सफाई अभियान चलाया जा रहा है। वृक्षारोपण का उदद्श्ेय है कि संसार का वातावरण प्रदूषण रहित बना रहे, उसमें उचित संतुलन बना रहे ताकि इस धरती पर बसने वाले लोग सहूलियत से जी सके। एक हरियाली बाहर भी हो और जीवन में भी।
   
    ये उद्गार आज यहां निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने उस समय व्यक्त किये जब वह समागम ग्राउण्ड न.8 के परिसर में एक पौधा लगाकर विश्वभर में चलाये जा रहे वृक्षारोपण एवं सफाई अभियान का उद्घाटन कर रहे थे।

    बाबा जी ने कहा कि सफाई अभियान भी विश्वभर में चलाया जा रहा है। खास तौर पर सार्वजनिक स्थानों की सफाई पर बल दिया जा रहा है, ताकि कोई रोग न फैले। हमारा मन भी शुद्ध हो, हम मानवीय गुणों को अपनाएं और वातावरण भी स्वच्छ हो।

    संत निरंकारी मिशन के भक्तों ने आज यह अभियान बाबा जी का 60वाँ जन्मदिवस मनाते हुए चलाया। संत निरंकारी चैरिटेबल फाउन्डेशन के तत्वाधान में मिशन की भारत तथा दूर देशों में सभी शाखाओं ने इस में भाग लिया।

    मिशन के श्रद्धालु भक्तों ने जहां वृक्षारोपण के लिये अपने भवनों तथा आसपास के क्षेत्रों को चुना, सफाई अभियान के अंतर्गत रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों अस्पतालों, स्कूलों कॉलेजों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों की सफाई की। उनका उदद्ेश्य था जन-जन को वातावरण से प्रदूषण दूर करने के लिये प्रेरित करना। इसके साथ ही वह स्वार्थरहित सेवा का उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे थे।

    दिल्ली में द्वारका के सेक्टर 19 की हरी पटट्ी में लगभग 500 पेड़ लगाये गये। सफाई के लिए मुख्य रूप से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को चुना गया। यहां लगभग 1500 श्रद्धालु भक्तों ने 4 घंटे तक सेवा करके पूरे क्षेत्र को साफ किया।
गुरु पूजा दिवस
    वर्ष 2003 से 23 फरवरी को गुरु पूजा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर संत निरंकारी सेवादल द्वारा रैली तथा साध संगत द्वारा विशेष सत्संग का आयोजन किया जाता है। इस से पूर्व यह कार्यक्रम 15 अगस्त को मुक्ति पर्व के साथ आयोजित किया जाता था जहां सेवादल के भाई-बहन सद्गुरु के प्रति तन, मन, धन की सेवाएं अर्पित करते और सद्गुरु से मानव समाज की निःस्वार्थ सेवा की कामना करते। अब ये कार्यक्रम 23 फरवरी यानि कि बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के जन्म दिवस के साथ जुड़ गया है। इस वर्ष भी यह सेवादल रैली मिशन की हर शाखा ने आज आयोजित की परंतु दिल्ली में इस रैली का आयोजन कल ही किया गया।  रैली में सेवादल के हज़ारों भाई-बहनों ने भाग लिया जिनमें 50 से अधिक अन्य देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने पी.टी. परेड तथा कुछ खेलों के अलावा एक सुन्दर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसमें भक्ति में सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला गया। यहां अनुशासन, लगन तथा मिलवर्तन पर भी बल दिया गया।

    रैली को सम्बोधित करते हुये बाबा जी ने सेवादल के योगदान की सरहाना की और कहा कि मिशन के विकास के साथ-साथ सेवादल में भी निरंतर वृद्धि हुई है और ये भाई बहन केवल सत्संग कार्यक्रम अथवा समागमों में ही सेवा नहीं करते बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के समय भी भरपूर योगदान देते हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में इंग्लैण्ड में जो बाढ़ की स्थतिति बनी उससे भी प्रभावित लोगांे की सहायता के लिये वहां के सेवादल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

    बाबा जी ने फरमाया कि यहां सेवा को मजबूरी नहीं बल्कि सौभाग्य समझा जाता है और ऐसी भावना के लिए बहुत ही तप त्याग की जरुरत होती है, क्योंकि सेवादल की भी अपनी-अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक ज़िम्मेदारियां होती है।

    इससे पूर्व सेवादल के मेम्बर इंचार्ज भी श्री एच.एल. अरोड़ा जी ने बाबा जी तथा पूज्य माता जी का स्वागत किया और आशीर्वाद मांगा कि सेवादल के भाई बहन पूर्ण मर्यादा, लगन तथा मिलवर्तन की भावना से मिशन तथा समाज की सेवा करते रहें।
                               निरंकारी बाबा का 60वां जन्मदिवस