Thursday, April 14, 2016

डॉ. अम्बेडकर जीवन दर्शन

13-अप्रैल-2016 20:29 IST
संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये
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डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का मूल नाम भीमराव था। उनके पिताश्री रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्‍होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे। सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म हुआ। कबीर पंथी पिता और धर्मपरायण माता की गोद में बालक का आरंभिक काल अनुशासित रहा।
शिक्षाः
बालक भीमराव का प्राथमिक शिक्षण दापोली और सतारा में हुआ। बंबई के एलफिन्स्टोन स्कूल से वह 1907 में मैट्रिक की परीक्षा में उत्‍तीण हुए। इस अवसर पर एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया और उसमें भेंट स्वरुप उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने स्वलिखित पुस्तक ‘‘बुद्ध चरित्र‘‘ उन्हें प्रदान की। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर भीमराव ने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये। बी.ए. के बाद एम.ए. के अध्ययन हेतु बड़ौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ की पुनः फेलोशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिल हुये। सन 1915 में उन्होंने स्नातकोत्तर उपाधि की परीक्षा पास की। इस हेतु उन्होंने अपना शोध ‘‘प्राचीन भारत का वाणिज्य‘‘ लिखा था। उसके बाद 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके पीएच.डी. शोध का विषय था, ‘‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण‘‘। फेलोशिप समाप्त होने पर उन्हें भारत लौटना था अतः वे ब्रिटेन होते हुये लौट रहे थे। उन्होंने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी. एस सी. तथा ग्रेज इन नामक विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि हेतु स्वयं को पंजीकृत किया और भारत लौटे। सब से पहले छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार बडौदा नरेश के दरबार में सैनिक अधिकारी तथा वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। पूरे शहर में उनको किराये पर रखने को कोई तैयार नही होने की गंभीर समस्या से वह कुछ हफतों के बाद ही मुंबई वापस आये। वहां परेल में डबक चाल और श्रमिक कॉलोनी में रहकर अपनी अधूरी पढाई को पूरी करने हेतु पार्ट टाईम अध्यापकी और वकालत कर अपनी धर्मपत्नी रमाबाई के साथ जीवन निर्वाह किया। सन 1919 में डॉ. अम्बेडकर ने राजनीतिक सुधार हेतु गठित साउथबरो आयोग के समक्ष राजनीति में दलित प्रतिनिधित्व के पक्ष में साक्ष्य दी। उन्‍होंने मूक और अशिक्षित तथा निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिये मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकायें संपादित कीं और अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिये वह लंदन और जर्मनी जाकर वहां से एम. एस सी., डी. एस सी., और बैरिस्टर की उपाधियाँ प्राप्त की। उनके एम. एस सी. का शोध विषय ‘‘साम्राज्यीय वित्त के प्राप्तीय विकेन्द्रीकरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन‘‘ तथा उनके डी.एससी उपाधि का विषय ‘‘रूपये की समस्या उसका उद्भव और उपाय‘‘ और ‘‘भारतीय चलन और बैकिंग का इतिहास‘‘ था। बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट्. की मानद उपाधियांे से सम्मानित किया था। इस प्रकार डॉ. अम्बेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गये क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डी.लिट्. आदि कुल 26 उपाधियां जुडी है।
योगदान:
भारत रत्न डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनमें से मुख्य निम्‍नलिखित हैं :-
सामाजिक एवं धार्मिक योगदान:
     मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नाशिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये।

     बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

     कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों,  ग्रंथालयों तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था. 1924) के जरिये अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया। सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्‍स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की। बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्‍थापित  कर अपने अंतिम ग्रंथ ‘‘द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा‘‘ के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।

     जात पांत तोडक मंडल (वर्ष 1937) लाहौर, के अधिवेशन के लिये तैयार अपने अभिभाषण को ‘‘जातिभेद निर्मूलन‘‘ नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्या, अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया।

     हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक, संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए वह जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे।
आर्थिक, वित्तीय और प्रशासनिक योगदान:
     भारत में रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया की स्थापना डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित शोध ग्रंथ ‘‘रूपये की समस्या-उसका उदभव तथा उपाय‘‘ और ‘‘भारतीय चलन व बैकिंग का इतिहास‘‘ ग्रन्थों तथा ‘‘हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष उनकी साक्ष्य‘‘ के आधार पर 1935 में हुई।

     उनके दूसरे शोध ग्रंथ ‘‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास‘‘ के आधार पर देश में वित्त आयोग की स्थापना हुई।

     कृषि में सहकारी खेती के द्वारा पैदावार बढाना, सतत विद्युत और जल आपूर्ति करने का उपाय बताया।

     औद्योगिक विकास, जलसंचय, सिंचाई, श्रमिक और कृषक की उत्पादकता और आय बढाना, सामूहिक तथा सहकारिता से प्रगत खेती करना, जमीन के राज्य स्वामित्व तथा राष्ट्रीयकरण से सर्वप्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी गणराज्य की स्थापना करना।

     सन 1945 में उन्होंने महानदी का प्रबंधन की बहुउददे्शीय उपयुक्तता को परख कर देश के लिये जलनीति तथा औद्योगिकरण की बहुउद्देशीय आर्थिक नीतियां जैसे नदी एवं नालों को जोड़ना, हीराकुण्ड बांध, दामोदर घाटी बांध, सोन नदी घाटी परियोजना, राष्ट्रीय जलमार्ग, केन्द्रीय जल एवं विद्युत प्राधिकरण बनाने के मार्ग प्रशस्त किये।

     सन 1944 में प्रस्तावित केन्द्रिय जल मार्ग तथा सिंचाई आयोग के प्रस्ताव को 4 अप्रैल 1945 को वाइसराय द्वारा अनुमोदित किया गया तथा बड़े बांधोंवाली तकनीकों को भारत में लागू करने हेतु प्रस्तावित किया।

     उन्होंने भारत के विकास हेतु मजबूत तकनीकी संगठन का नेटवर्क ढांचा प्रस्तुत किया।

     उन्होंने जल प्रबंधन तथा विकास और नैसर्गिक संसाधनों को देश की सेवा में सार्थक रुप से प्रयुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।
संविधान तथा राष्ट्र निर्माण:
     उन्‍होंने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष 11 महीने और 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार कर 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पध्दति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

     वर्ष 1951 में महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधेयक पारित करवाने में प्रयास किया और पारित न होने पर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया।

     वर्ष 1955 में अपना ग्रंथ ‘‘भाषाई राज्यों पर विचार‘‘ प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 वर्षों बाद कुछ प्रदेशों में साकार हुआ।

     निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बडे आकार के राज्यों को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर व ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त तथा राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीति बनाई।

     प्रजातंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए राज्य के तीनों अंगों न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका को स्वतंत्र और पृथक बनाया तथा समान नागरिक अधिकार के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य के तत्व को प्रस्थापित किया।

     विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सहभागिता संविधान  द्वारा सुनिश्चित की तथा भविष्य में किसी भी प्रकार की विधायिकता जैसे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, पंचायत राज इत्यादि में सहभागिता का मार्ग प्रशस्त किया।

     सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करने तथा सार्वजनिक प्राथमिक उद्यमों यथा बैकिंग, बीमा आदि उपक्रमों को राज्य नियंत्रण में रखने की पुरजोर सिफारिश की तथा कृषि की छोटी जोतों पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए उन्होंने औद्योगीकरण की सिफारिश की।
शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं श्रम कल्याण:
     वायसराय की कौंसिल में श्रम मंत्री की हैसियत से श्रम कल्याण के लिए श्रमिकों की 12 घण्टे से घटाकर 8 घण्टे कार्य-समय, समान कार्य समान वेतन, प्रसूति अवकाश, संवैतनिक अवकाश, कर्मचारी राज्य बीमा योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 बनाना, मजदूरों एवं कमजोर वर्ग के हितों के लिए तथा सीधे सत्ता में भागीदारी के लिए स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन कर 1937 के मुम्बई प्रेसिडेंसी चुनाव में 17 में से उन्‍होंने 15 सीटें जीतीं।

     कर्मचारी राज्य बीमा के तहत स्वास्थ्य, अवकाश, अपंग-सहायता, कार्य करते समय आकस्मिक घटना से हुये नुकसान की भरपाई करने और अन्य अनेक सुरक्षात्मक सुविधाओं को श्रम कल्याण में शामिल किया।

     कर्मचारियों को दैनिक भत्ता, अनियमित कर्मचारियों को अवकाश की सुविधा, कर्मचारियों के वेतन श्रेणी की समीक्षा, भविष्य निधि, कोयला खदान तथा माईका खनन में कार्यरत कर्मियों को सुरक्षा संशोधन विधेयक सन 1944 में पारित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

     सन 1946 में उन्होंने निवास, जल आपूर्ति, शिक्षा, मनोरंजन, सहकारी प्रबंधन आदि से श्रम कल्याण नीति की नींव डाली तथा भारतीय श्रम सम्मेलन की शुरूआत की जो अभी निरंतर जारी है, जिसमें प्रतिवर्ष मजदूरों के ज्वलंत मुद्दों पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति में चर्चा होती है और उसके निराकरण के प्रयास किये जाते है।

     श्रम कल्याण निधि के क्रियान्वयन हेतु सलाहकार समिति बनाकर उसे जनवरी 1944 में अंजाम दिया।

     भारतीय सांख्यिकी अधिनियम पारित कराया ताकि श्रम की दशा, दैनिक मजदूरी, आय के अन्य स्रोत, मुद्रस्‍फीति, ऋण, आवास, रोजगार, जमापूंजी तथा अन्य निधि व श्रम विवाद से संबंधित नियम सम्भव कर दिया।

     नवंबर 8, 1943 को उन्होंने 1926 से लंबित भारतीय श्रमिक अधिनियम को सक्रिय बनाकर उसके तहत भारतीय श्रमिक संघ संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया और श्रमिक संघ को सख्ती से लागू कर दिया।

     स्वास्थ्य बीमा योजना, भविष्य निधि अधिनियम, कारखाना संशोधन अधिनियम, श्रमिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और विधिक हडताल के अधिनियमों को श्रमिकों के कल्याणार्थ निर्माण किया।      (PIB)

-         लेखक सम्पादक (डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान)

Tuesday, March 24, 2015

खटकड़ कलां में बजाया बेलन ब्रिगेड ने नशो के खिलाफ बिगूल

Tue, Mar 24, 2015 at 5:46 PM
शहीद के पैतृक गाँव में जा कर लिया आंदोलन और तेज़ करने का संकल्प
लुधियाना: 24 मार्च 2015: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
बेलन ब्रिगेड की तरफ से शहीद-ए -आज़म सरदार भगत सिंह की  जन्म भूमि खटकड कलां में लोगो को नशो के खिलाफ जागरूक करने के लिए एक सभा का आयोजन किया जिसमे साफ़ कहा गया कि सरकार की गलत नीतियों के कारण पांच दरियाओं पावन भूमि पंजाब में आज छठा दरिया शराब व अन्य प्रकार के नशे का बहने लगा है। जिस पावन धरती पर भगत सिंह व सुखदेव जैसे देश भक्त पैदा हुए जिन्होंने आज़ादी की जंग में अपना बलिदान तक दे  दिया। आज उसी पंजाब की धरती पर  युवा वर्ग नशे की दल दल में धंस कर अपना जीवन नष्ट कर रहे है।
बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्ष आर्किटेक्ट अनीता शर्मा ने भगत सिंह के भतीजे अभय संधु से मुलकात की और उनको बताया कि आज सरकार ने  शराब  के नशे को  कम करने की बजाय अब जगह जगह शराब के ठेके खोल दिए है यही कारण है  कि  युवा वर्ग शराब का  नशा करने के  बाद  धीरे धीरे  हीरोइन और स्मैक के नशे तक पहुँच जाता है।
इस अवसर पर बेलन ब्रिगेड के सदस्यों ने लोगो को नशे के खिलाफ जागरूक करने के लिए हजारो पैम्फलेट बांटे। 

Wednesday, March 18, 2015

कन्‍या बचाओ : वह एक धन है..... न कि एक बोझ!!

18-मार्च-2015 17:23 IST
महिलाओं के लिए भारत विश्‍व में 'चौथा सर्वाधिक खतरनाक देश
लेख//अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस//*डॉ. संतोष जैन पासी//**आकांक्षा जैन
हमारी सभ्‍यता की नियति को संवारने में महिलाओं की भूमिका अहम है। फिर भी ज्‍यादातर महिलाओं की अनदेखी होती है और उन्‍हें असमानता व अभाव से भी जूझना पड़ता है। यदा-कदा उन्‍हें क्रूर हिंसा/अपराध का सामना करना पड़ता है। भारत में परंपराएं/रीति-रिवाज बेटियों के अस्‍तित्‍व को नकारते रहे हैं। महिलाओं को बराबरी देने के तमाम दावों और इस उद्देश्‍य के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद आज भी बड़ी संख्‍या में नवजात बच्‍चियों को कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है, गर्भ में पल रही बच्‍चियों के लिए भी उनकी माताओं को दुत्‍कार दिया जाता है। पक्षपात और भेदभाव के साथ हमारा समाज कन्‍याओं/महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार करता है और इसकी शुरूआत उनके जन्‍म से पहले ही हो जाती है। इस पक्षपातपूर्ण रवैये व दुर्व्‍यवहार का सामना उन्‍हें बचपन, किशोरावस्‍था और वयस्‍क (गर्भावस्‍था) से लेकर पूरी जिन्‍दगी करना पड़ता है। 
यद्यपि सती, जौहर और देवदासी जैसी पुरातन कुरितियां अब प्रतिबंधित हैं और आधुनिक भारत में इनके लिए कोई जगह नहीं है, फिर भी देश के दूरदराज इलाकों से आज भी कुछेक घटनाएं सामने आती हैं। इसी प्रकार, पर्दा प्रथा का प्रचलन शहरों और अभिजात्‍य वर्ग में कम हो रहा है, परंतु ग्रामीण परिवारों में यह आज भी प्रचलित है। घरेलू हिंसा, दहेज, बलात्‍कार, छेड़खानी, यौन शोषण और देहव्‍यापार आदि चिन्‍ता के अन्‍य विषय हैं। भारत में घरेलू हिंसा सर्वव्‍यापी हो गई है और यह तब है जबकि महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कानूनी तौर पर सुरक्षा प्रदान की गई है।

कन्‍याओं के प्रति पक्षपात के कई रूप हैं – अपर्याप्‍त स्‍तनपान व भोजन और स्‍वास्‍थ्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं में देरी उन्‍हें कुपोषण का शिकार बनाती हैं, जबकि देखभाल में कमी और अनदेखी उन्‍हें भावनात्‍मक रूप से कमजोर कर देती है। परिवार में कन्‍याओं के लिए स्‍वास्‍थ्‍य, पोषण, व्‍यक्‍तित्‍व विकास और शिक्षा आदि के लिए पर्याप्‍त संसाधन नहीं रखे जाते हैं। ये सभी महिलाओं में उच्‍च मृत्‍युदर के कारण हैं। भ्रूणहत्‍या संभवत: महिलाओं के प्रति हिंसा का क्रूरतम रूप है, जो उन्‍हें एक आधारभूत और मौलिक अधिकार से वंचित करता है, जो है – 'जीने का अधिकार'। पुराने जमाने में अवांछित कन्‍या शिशु को जहर देकर, गला घोंटकर व अन्‍य विधियों से मार दिया जाता था।

हमारे समाज में कन्‍या शिशु हत्‍या का प्रचलन पुराने समय से है, लेकिन चिकित्‍सा विज्ञान की प्रगति के साथ ही कन्‍या भ्रूण हत्‍या में लगातार वृद्धि होती चली गई। तकनीकी प्रगति की वजह से जन्‍म-पूर्व (प्री नेटल) लिंग निर्धारण संभव होने लगा और इससे कन्‍या भ्रूण हत्‍या के मामले बढ़ते चले गए। बेटों को प्राथमिकता या पुत्र मोह की सदियों से चली आ रही परंपरा, चिकित्‍सा तकनीकों के साथ मिलकर भारतीय परिवार को विकल्‍प उपलब्‍ध कराता है कि वे बेटियों के लिए भारी दहेज देने के लिए तैयार रहे या फिर जन्‍म से पहले ही उन्‍हें खत्‍म कर दे। परिणामस्‍वरूप, अभिनव चिकित्‍सा प्रौद्योगिकी और अधुनातन लिंग निर्धारण तकनीक (सेल फ्री फोएटल डीएनए टेस्‍टिंग, अल्‍ट्रासाउंड स्‍कैन, एमीनोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैम्‍पलिंग) का उपयोग या दुरूपयोग कन्‍याओं के जन्‍म से पूर्व ही उनसे छुटकारा पाने के लिए किया जाने लगा ।

भारत में जन्‍म से ही कन्‍या को एक भार-भोजन के लिए अतिरिक्‍त मुंह- माना जाता है। कुल मिलाकर कन्‍याओं को बोझ और पराया धन समझा जाता है। दूसरी तरफ बेटों का जन्‍म वंश का नाम आगे बढ़ाने के लिए आवश्‍यक माना जाता है। इसलिए बेटों के जन्‍म के लिए मनौतियां मांगी जाती हैं। कन्‍याओं को सदैव वित्‍तीय बोझ के रूप में देखने वाला हमारे घोर पैतृक समाज में इन रूढ़ीवादी कुरितियों की वजह से निम्‍न लिंगानुपात वाले ग्रामीण इलाकों में बलात्‍कार, देहव्‍यापार और 'पत्‍नी साझा करना' समेत महिलाओं के प्रति अन्‍य अपराधों में वृद्धि हो रही है।
थॉमसन रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के लिए भारत विश्‍व में 'चौथा सर्वाधिक खतरनाक देश' है।
कुछ क्रूर हाथों ने हमसे साहसी और आने वाले समय में फिजियोथेरेपिस्‍ट बनने वाली 'निर्भया' को छीन लिया। निर्भया के माता-पिता को उसे जन्‍म देने के लिए बधाई दी जानी चाहिए। सभी की सहानुभूति उनके साथ है। बेटा जो आगे चलकर बलात्‍कारी बनता है, उसकी निन्‍दा उचित है। यहां वह कन्‍या (निर्भया) ही प्रशंसा की हकदार है।
हमें ना‍गरिकों, विशेषकर पुरूषों, की मानसिकता और सोच बदलने की जरूरत है। पुरूषों को यह समझाने की जरूरत है कि उन्‍हें सभी उम्र की महिलाओं की इज्‍जत करनी चाहिए और इन मूल्‍यों को बचपन से ही उनकी मानसिकता में मजबूती से ढालने की जरूरत है। एक बालक को यह समझाने की जरूरत है कि वह न केवल अपनी माता, बहनों और सगे संबंधियों का सम्‍मान करे बल्कि सम्‍पर्क में आने वाली सभी कन्‍याओं/महिलाओं का आदर करे। तभी हमारा समाज शांतिपूर्ण ढंग से रहने के लिए एक सुरक्षित स्‍थान होगा।
पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की जनसंख्‍या को मापने के लिए लिंगानुपात एक कारगर मानदण्‍ड है। जनगणना 2011 के अनुसार, हमारी जनसंख्‍या में 1000 पुरूषों पर केवल 940 महिलायें हैं और यह निम्‍न लिंगानुपात को दर्शाता है। घटता बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष) गहरी चिंता का विषय है। देश के प्रख्‍यात जनसंख्‍या विशेषज्ञ प्रोफेसर आशीष बोस ने लुप्‍त होती कन्‍यायें (मिसिंग गर्ल्‍स) को लेकर खतरे की घंटी बजाई है और 6 वर्ष से कम उम्र की जनगणना आंकड़ों का अलग से मूल्‍यांकन करने पर जोर दिया है। जनगणना 2011 के मुताबिक बाल लिंगानुपात घटकर 919 बालिका प्रति 1000 बालक हो गया है। हरियाणा, पंजाब, दिल्‍ली, महाराष्‍ट्र और गुजरात जैसे विकसित राज्‍य भी राष्‍ट्रीय औसत से काफी पीछे हैं। दिल्‍ली में बाल लिंगानुपात (871 बालिकायें/1000 बालक) सर्वाधिक कम है। य‍द्य‍पि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर लिंगानुपात एक सकारात्‍मक ट्रेंड को दर्शाता है, पर बाल लिंगानुपात का गिरना गहरी चिंता का विषय है। महिला जन्‍मदर के गिरने का एक बड़ा कारण जन्‍म के समय कन्‍याओं के प्रति हिंसात्‍मक व्‍यवहार भी माना जाता है।
एक ताजा अध्‍ययन (2011) से पता चला है कि 1980 से लेकर 2010 के दौरान करीब 1.2 करोड़ कन्‍या भ्रूण को गर्भपात के जरिए समाप्‍त किया गया। मेक फर्सन (2007) ने भी पाया था कि प्रत्‍येक वर्ष भारी संख्‍या में गर्भपात सिर्फ इस वजह से कराया जाता है कि वे कन्‍या भ्रूण हैं। यह भी उल्‍लेखित किया गया है कि सम्‍पन्‍न और शिक्षित परिवारों में भी लिंग को लेकर गर्भपात कराने की प्रवृत्ति पाई जाती है। यदि पहले से कन्‍या है तो दूसरे और तीसरे जन्‍म में कन्‍या भ्रूण की वजह से गर्भपात ज्‍यादा होते हैं। महिलायें और बच्‍चे अच्‍छे तादाद के साथ जनसंख्‍या का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा हैं और वे राष्‍ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी महिलायें और कन्‍यायें असमानता और बहुअयामी अभाव का सामना कर रही है और जब तक भेदभाव का यह कुचक्र समाप्‍त नहीं होता तब तक  समावेशी विकास संभव नहीं है। किसी ने सच कहा है कि 'जब हम एक पुरूष को शिक्षित करते हैं तो हम एक व्‍यक्ति को शिक्षित कर रहे होते हैं; परन्‍तु जब हम एक कन्‍या/महिला को शिक्षित करते हैं, हम पूरे परिवार या कहें तो पूरे राष्‍ट्र और मानवता को शिक्षित कर रहे होते हैं।'
कई महिलाओं ने विभिन्‍न क्षेत्रों में राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तरों पर ऊंचाइयों को छुआ है। यदि उनके माता-पिता भी कन्‍या भ्रूण हत्‍या को अपनाते तो समाज के विकास में हम उनके योगदान से वंचित रहते।
कन्‍या और महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए किए गए उपाय और पहल निम्‍न हैं :
* बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ- '' प्रधानमंत्री ने हाल में ही इस योजना का शुभारम्‍भ किया। योजना का एक उद्देश्‍य निम्‍न बाल लिंगानुपात वाले 100 जिलों में स्थिति को सुधारना है और यह माना जा रहा है कि यदि इसे सही ढंग से क्रियान्वित किया गया तो यह भारत को एक आधुनिक लोकतंत्र बनाने में बेहद कारगर होगा।
* सेव द गर्ल चाइल्‍ड का उद्देश्य लिंग के आधार पर गर्भपात को समाप्‍त करना है ताकि कन्‍या भ्रूण हत्‍या से निजात मिले।
* भारत सरकार ने 2001 को 'महिला सशक्तिकरण (स्‍वशक्ति) वर्ष' घोषित किया था; राष्‍ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति लागू की गई।
* कन्‍याओं को जीवन के विभिन्‍न चरणों में सशर्त नकद प्रोत्‍साहन और छात्रवृत्तियां दी जाती हैं और एक/दो कन्‍याओं के माता-पिता के लिए उच्‍च पेंशन लाभ का भी प्रावधान है।
* बालिकाओं को सशक्तिकरण के लिए लाडली योजना शुरू की गई है और राज्‍यों में भी इस तरह की योजनायें चलाई जा रही हैं।
* सुकन्‍या समृद्धि योजना, बालिका समृद्धि योजना और किशोरी शक्ति योजना
कन्‍याओं से संबंधित कुछ मुद्दों को राष्‍ट्रीय बाल नीतियों में समाहित किया गया है और निम्‍न कार्यक्रमों के तहत उन पर ध्‍यान दिया जाता है :
* राष्‍ट्रीय बाल नीति, 1974
*  राष्‍ट्रीय बाल कार्य योजना, 2005
*   प्री-नेटल डेग्‍नोस्टिक टेक्‍नीक्‍स-रेगूलेशन एण्‍ड प्रीवेन्‍शन ऑफ मिसयूज (पीएनडीटी) एक्‍ट, 1994
*    प्री- कॉन्‍सेप्‍शन, प्री-नेटल डेग्‍नोस्टिक टेक्‍नीक्‍स-रेगूलेशन एण्‍ड प्रीवेन्‍शन ऑफ मिसयूज (पीसीपीएनडीटी) एक्‍ट, 2004
*   देह व्‍यापार (इमोरल ट्रेफिक) रोकथाम अधिनियम, 1986
Ø      चूंकि बाल लिंगानुपात तेजी से घट रहा है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कन्‍या भ्रूण हत्‍या जैसी सामाजिक बुराई की रोकथाम के लिए राज्‍यों को उन परिवारों को प्रोत्‍साहित व लाभान्वित करने के निर्देश दिए हैं जो कन्‍याओं का 'सम्‍मान और आदर' करते हैं।
Ø      समाज में कन्‍या/महिला के सकारात्‍मक छवि स्‍थापित करने के लिए नीति निर्धारकों, योजनाकारों, प्रशासकों, प्रशासनिक एजेंसियों और मुख्‍य रूप से समुदायों को लिंग भेदी मानसिकता के खिलाफ जागरूक करना बेहद जरूरी है।
Ø      ग्रामीण व कमजोर वर्ग समेत सभी महिलाओं को तत्‍काल शिक्षित और सशक्‍त करना जरूरी है। इससे परिवार और समुदाय में उनकी स्थिति सुधरेगी। महिला सशक्तिकरण से ही बहुअयामी प्रगति होगी, साथ ही रूढ़ीवादी मान्‍यताओं व गैरवैज्ञानिक प्रचलनों से निजात मिलेगी।
*डॉ. संतोष जैन पासी लोक स्‍वास्‍थ्‍य पोषण सलाहकार, पूर्व निदेशक, इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ होम इक्‍नोमिक्‍स (दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय)
**सुश्री आकांक्षा जैन, पीएचडी शोधकर्ता, रिसर्च एसोसिएट, एलएस टेक वेंचर्स, गुड़गांव
(फीचर में व्‍यक्‍त विचार लेखक के हैं, आवश्‍यक नहीं कि पसूका भी उससे सहमत हो)       पीआईबी फीचर
ईमेल-featuresunit@gmail.com   और himalaya@nic.in
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विजयलक्ष्‍मी कासोटिया/एएम/बीके/एसके-199
पूरी सूची - 18-03-2015

Friday, March 13, 2015

नशे के खिलाफ अपनी आंधी को और फ़ैलाने में जुटा बेलन ब्रिगेड

आम जनता के घरों में शराब से घरेलू क्लेश व हिंसा बढ़ी-ब्रिगेड का आरोप
लुधियाना : 13 मार्च 2015: (दिल्ली स्क्रीन ब्यूरो): 
पंजाब में नशे खिलाफ उठ रही आवाज़ को देश के कोने कोने में पहुंचने  की तैयारी में है बेलन ब्रिगेड। इस मकसद के लिए जहाँ बड़े बड़े संगठनों और नेताओं से सम्पर्क साधा जा रहा वहीँ झौंपड पट्टी में रहने वाले गरीब लोगों से भी आपसी संबंध मज़बूत किये जा रहे हैं।  इस मकसद के लिए संगठन प्रमुख अनीता शर्मा के साथ साथ शोभा वशिष्ठ और भाजपा की संजना भी पूरी तरह सक्रिय है। पंजाब हरियाणा के साथ साथ दिल्ली की झौंपड पट्टी में रह रहे गरीब लोगों पर भी बेलन ब्रिगेड अपना ध्यान पूरी तरह से केंद्रित कर रहा है। अगर यह गरीब समुदाय ब्रिगेड के साथ आ जाता है तो गली मोहल्लों में शराब की बिक्री  लिए भी आसान नहीं होगा। 
बेलन ब्रिगेड ने गरीब इलाको में जाकर वहां वहां अपना अभियान तेज़ कर दिया है जहां 90 प्रतिशत लोग शराबी है और वहां की महिलाओ से शराब से घरेलू हिंसा विषय पर चर्चा की।  आज  किसी से छुपा नहीं है कि  शराब के  कारण हर गरीब परिवार का ताना बाना बिगड़ चुका है। इस अभियान के अंतर्गत जहाँ बेलन ब्रिगेड नशे के खिलाफ अपना अभियान चला रहा है वहां इन इलाकों में रह रही पढ़ी लिखी और होशियार महिलाओं को भी इस अभियान में  है तांकि एक नए स्वस्थ समाज का निर्माण तेज़ी से हो सके। इन गरीब क्षेत्रों की प्रतिभा को तलाश करने  काम सरकार के समाज भलाई विभागों को करना चाहिए था वह काम अब बेलन ब्रिगेड कर रहा है। ब्रिगेड ने इस बात की निंदा की है कि पंजाब सरकार की  गली गली  में शराब  वेच कर टैक्स  इकठ्ठा  करने की  योजना ने बूढ़े माँ बाप मासूम वच्चो के मुँह से दो वक्त की रोटी को भी छीन लिया है।  लहू बिकेगा शराब-ए- दुकान खुलने तक 
बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्ष आर्किटेक्ट अनीता शर्मा ने बताया कि एक गरीब मजदूर जब थक हार कर शाम को घर लौटता है तो रास्ते में भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोज़गारी, बीमारी और मानसिक गम उसे शराब पीने के लिए मजबूर कर देते है और वह घर के बाहर गली से शराब पीकर जब घर वापस  आता है तो उसे शराबी हालत में देखकर सारा परिवार दुःखी हो जाता है और जब पत्नी बच्चे उसे शराब छोड़ने के लिए कहते है तो घर में क्लेश और हिंसा का माहौल बन जाता है, वच्चो पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। 
अनीता शर्मा ने कहा कि पंजाब सरकार गरीबो के घरो में खुशहाली लाने के लिए इस बार सरकारी बजट में शराब के ठेको में 20 प्रतिशत की कटौती करे ताकि कुछ हद तक  गरीब इलाको में रहने वाले लोग भी शराब जैसे सरकारी नशे से दूर अपने परिवार के साथ दो वक्त की रोटी सुख से  खा सके। 
इस अवसर पर शोभा वशिष्ठ और संजना ने भी महिलाओ को  शराब से  होने  वाली समस्याओं के बारे बताया।